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परिशिष्ट नं० २
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ध्यान भी होते हैं ।
३८- बाद के दो शुक्ल ध्यान सयोगकेवली और प्रयोगकेवली के ही होते हैं । ३९ – पृथक्त्ववितर्क एकत्ववितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरत क्रियानिवर्ति यह चार शुक्लध्यान के भेद हैं ।
४० - पृथक्त्ववितर्क तीनों योगों के धारक के, एकत्ववितर्क तीनों में से किसी एक योग वाले के, तीसरा सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति व्काययोग बालों के और व्युपरत क्रियानिवर्त्ति अयोगी केवली के ही होता है ।
४१ - पहिले के दो ध्यान श्रुतकेवली के श्राश्रय होते हैं और वितर्क तथा विचार सहित होते हैं ।
४२ - दुसरा शुक्लध्यान विचार रहित है ।
४३ - श्रुतज्ञान को वितर्क कहते हैं ।
४४ – अर्थ, व्यञ्जन और योगों के पलटने को विचार कहते हैं ।
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निर्जरा का परिमाण -
४५ - सम्यग्दृष्टि, श्रावक, मुनी, अनंतानुबंधी का विसंयोजन करने वाला, दर्शनमोह को नष्ट करने वाला, चारित्रमोह को उपशम करने वाला, उपशांत मोह वाला, क्षपकश्रेणी चढ़ता हुआ, क्षीणमोही और जिनेन्द्र भगवान इन सब के क्रमसे असंख्यात गुणी निर्जरा होती है 1
मुनियों के भेद
४६ – पुलाक, बकुश, कुशील, निग्रंथ और स्नातक यह पांच प्रकार के निर्ग्रथ साधु हैं।
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9- संयम, श्रुत, प्रतिसेषना, तीर्थ, लिंग, लेश्या, उपपाद और स्थान इन आठ प्रकार से उन मुनियों के और भी भेद होते हैं ।