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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः
होता है और नयों में विशेष कथन होता है। एक २ नय में एक २ अपेक्षा से बहुत विशेष कथन किया जाता है। अत: प्रमाण से विचार करने के उपरान्त विस्तार से विचार करने के लिये नयों के सब भेदों से विचार करे। क्योंकि प्रमाण वस्तु के सर्वदेश का सामान्य वर्णन करता है और नय वस्तु के एक देश का विशेष वर्णन करती है।
___ अब रत्नत्रय तथा सात तत्वों पर विचार करने का एक और प्रकार बतलाते हैं - निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः॥
अ०१, सू०७ निह से पुरिसे कारण कहिं केसु कालं कइविहं ॥
अनुयोगद्वार सूत्र सू० १५१ छाया- निर्देशः पुरुषः कारणं कुत्र केषु काल : कतिविधं ।
भाषा टीका-निर्देश, पुरुष, कारण, कहाँ (किस स्थान में ), किनमें, काल, कितनी प्रकार का।
संगति-सूत्र में निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान का वर्णन है, अनुयोगद्वार सूत्र में पृष्ठ २९४ में इस विषय का बहुत अधिक विस्तार से वर्णन किया गया है, यहां तो केवल थोड़े से नाम छांट लिये गये हैं, किन्तु तो भी इनमें और उनमें विशेष भेद नहीं है। निर्देश तो दोनों में है ही, स्वामित्व और पुरुष में, साधन और कारण में, अधिकरण और कहाँ में, स्थिति और काल में तथा विधान और कितनी प्रकार में कोई विशेष अन्तर न होकर केवल शाब्दिक अंतर है। वो भी अनुयोग के द्वार वाक्यों में 'किनमें ' शब्द अधिक है। क्योंकि आगम में विशेष कथन और सूत्र में सूक्ष्मकथन होता है। सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च ॥
अ० १, सू०० से किं तं अणुगमे ? नवविहे पण्णत्ते, तं जहा-संतपयपरूवणया १ दव्वपमाणं च २ खित्त ३ फुसणा य ४ कालो य ५ अंतरं ६ भाग ७ भाव ८ अप्पाबहुँ चेव । अनुयोग द्वार सू० ८०