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________________ २२४ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : ९, ३६. छाया- सयोगिकेवलिक्षीणकषायवीतरागचरित्रार्याश्च अयोगिकेवलिली. णकषायवीतरागचरित्रार्याश्च । भाषा टीका-सयोगि केवलि क्षीणकषायवीतरागचारित्र वाले आर्यो के और अयोगिकेवलि क्षीणकषायवीतरागचारित्रवाले आर्यो के [सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति और व्युपरत क्रियानिवर्ति नाम के बाद के दो।शुक्लध्यान होते हैं।] पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवर्तीनि। सुक्के झाणे चउविहे पण्णत्ते) तं जहा- हुत्तवितके सवियारी १, एगत्तवितके अवियारी २, सुहुमकिरिते अणियट्टी ३, समुच्छिन्नकिरिए अप्पडिवाती। व्याख्याप्रज्ञप्ति श० २५, उ० ७, सू० ८०३. छाया- शुक्लध्यानं चतुर्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-पृथ्क्त्ववितर्कः सविचारि १, एकत्ववितर्कः अविचारि २, सूक्ष्मक्रिया अनिवर्ति ३, समुच्छिन्न क्रिया अप्रतिपाति । भाषा टीका - शुक्खध्यान के चार भेद होते हैं- १. पृथक्त्व वितर्क सविचारी, २. एकत्ववितर्क अविचारी, ३. सूक्ष्मक्रिया अनिवर्ति अथवा सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति और ४. समुच्छिन्नक्रिया अप्रतिपाती अथवा व्युपरतक्रियानिविर्ति । व्येकयोगकाययोगायोगानाम् । सुहमसंपरायसरागचरित्तारिया य बायरसंपरायसरागचरितारिया य, ........"उवसंतकसायवीतरायचरित्तारिया य खीणकसायवीयरायचरित्तारिया च । ९.४०.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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