SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० ] तस्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : स्त्रियों की कथा का त्याग करना, स्त्रियों की इन्द्रियों के देखने का त्याग करना, पहिले भोगे हुए भोग और पहिले की हुई क्रीड़ाओं को स्मरण न करना, पौष्टिक आहार का त्याग करना, [ यह पांच ब्रह्मचर्य व्रत की भावनाएं हैं। -- मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पंच । सोइन्दियरागोवरई चक्खिदियरागोवरई घाणिंदियरागोवरई जिभिदियरागोवरई फासिंदियरागोवरई। समवायांग समय २५. छाया- श्रोत्रेद्रियरागोपरतिः चक्षुरिन्द्रियरागोपरतिः प्राणेन्द्रियरागोपरतिः जिव्हेन्द्रियरागोपरतिः स्पर्शनेन्द्रियरागोपरतिः । भाषा टीका - कर्ण इन्द्रिय के राग उत्पन्न करने वाले विषयों का त्याग, नेत्र इन्द्रिय के राग का त्याग, घाण इन्द्रिय के राग का त्याग, जिव्हा इन्द्रिय के राग (शौक) का त्याग, तथा स्पर्शन इन्द्रिय के राग का त्याग [ यह पांच परिग्रह त्याग महाव्रत की भावनाए हैं] हिंसादिष्विहामुत्रापायावद्यदर्शनम् । दुःखमेव वा। संवेगिणी कहा चउव्विहा पण्णता, तं जहा-इहलोगसंवे. गणी परलोगसंवेगणी आतसरीरसंवेगणी परसरीरसंवेगणी। णिव्वेगणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-इहलोगे दुच्चिन्ना कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति ॥१॥ इहलोगे दुच्चिन्ना कम्मा परलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति ॥२॥ परलोगे दुच्चिन्ना कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुता भवंति ॥ ३ ॥
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy