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________________ १५२ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : छाया- एकान्तबालः मनुष्यः नैरयिकायुमपि प्रकरोति - तिर्यगायुमपि प्रकरोति मनुष्यायुमपि प्रकरोति देवायुमपि प्रकरोति । भाषा टीका -एकान्तबाल (बिना शील और व्रत वाला) मनुष्य नरक आयु भी बांधता है, तिर्यश्च आयु भी बांधता है, मनुष्य आयु भी बांधता है और देवायु का भी बन्ध करता है। सरागसंयमसंयमाऽसंयमाञ्कामनिर्जराबालतपांसि दैवस्य । ६, २०. चउहिं ठाणेहिं जीवा देवाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहासरागसंजमेणं संजमासंजमेणं, बालतवोकम्मेणं, अकामणिज्जराए। स्थानांग स्थान ४ उ० ४ सू० ३७३. छाया- चतुर्भिः स्थानैः जीवाः देवायुत्वाय कर्म प्रकुर्वन्ति, तद्यथा-सराग ___ संयमेन, संयमाऽसंयमेन, बालतपकर्मणा, अकामनिर्जरया । भाषा टीका - चार प्रकार से जीव देवायु का बन्ध करते हैं-सरागसंयम से, संयमासयम से, बाल तप से और अकामनिर्जरा से। सम्यक्त्वं च । ६, २१. वेमाणियावि 'जइ सम्मट्ठिीपज्जतसंखेजवासाउयकम्मभूमिगगब्भवतियमणुस्सेहिंतो उववजंति किंसंजतसम्मट्ठिीहिंतो असंजयसम्मदिट्ठीपजत्तएहितो संजयासंजयसम्मदिट्ठीपजत्तसंखेज० हिंतो उववज्जति ? गोयमा तीहिंतोवि उववजंति, एवं जाव अञ्चुगो कप्पो। प्रज्ञापना० पद६.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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