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________________ पञ्चमोऽध्यायः [ १३५ - - ५, २६. संगति - अणु तथा परमाणु पुद्गेल और स्कन्ध सबा नोपरमाणु पुद्गल में नाम मात्र का ही भेद है। तात्विक भेद नहीं है। भेदसङ्घातेभ्यः उत्पद्यन्ते। भेदादणुः। ५, २७. दोहि ठाणेहिं पोग्गला साहण्णंति,तं जहा-सई वा पोग्गला साहन्नति परेण वा पोग्गला साहन्नति । सई वा पोमगला भिजति परेण वा पोग्गला भिजति । स्थानांग स्थान २, उ० ३, सूत्र ८२. छाया- द्वाभ्यां स्थानाभ्यां पुद्गलाः संहन्यन्ते । तद्यथा-स्वयं वा पुद्गलाः संहन्यन्ते परेण वा पुद्गलाः संहन्यंते । स्वयं वा पुद्गलाः भिद्यन्ते परेण वा पुद्गलाः भिद्यन्ते । भाषा टीका - दो प्रकार से पुद्गल एकत्रित होकर मिलते हैं-या तो स्वयं मिलते हैं अथवा दूसरे के द्वारा मिलाये जाते हैं, या तो पुद्गल स्वयं भेद को प्राप्त होते हैं अथवा दूसरों के द्वारा भेद को प्राप्त होते हैं। संगति - पुद्गलों के अणु और स्कन्ध भेद और संघात दोनों से ही बनते हैं। चाहे वह भेद या संघात स्वयं हो अथवा दूसरे के द्वारा हो । मणु केवल भेद से ही होता है, संघात से नहीं होता। भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषः। ___५, २८. चक्खुदंसणं चक्खुदंसणिस्स घड पड कड रहाइएसु दव्वेसु । अनुयोग० दर्शनगुणप्रमाण सू० १४४. छाया- चक्षुदर्शनं चक्षुदर्शिनः घटः पटः कटा रथादिषु द्रव्येषु ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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