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________________ १३४ ] तत्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वय सहन्धयार-उज्जोओ, पभा छाया तवो इ वा । घण्णरसगन्धफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥ १२ ॥ एगत्तं च पुहत्तं च, संखा संठाणमेव च । संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्खणं ॥ १३ ॥ ___उत्तराध्ययन अध्ययन २८. छाया- शब्दोऽधकार उद्योतः प्रभाच्छायातम इति वा। पर्णरसगन्धस्पर्शाः, पुद्गलानां तु लक्षणम् ॥ १२॥ एकत्वं च पृथकत्वं च, संख्या संस्थानमेव च । संयोगाश्च विभागाश्च, पर्यवाणां तु लक्षणम् ॥ १३ ॥ भाषा टीका- शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, भातप, वर्ण, रस, गंध और सर्श पुद्गलों के लक्षण हैं ॥१२॥ एकत्व, पृथक्त्व, संख्या, संस्थान, संयोग और दिमाग पुद्गल पर्वानों के भपय ॥१३॥ संगति - इसमें सौक्ष्म्य तथा स्थौल्य के अतिरिक्त अन्य सभी शब्द मा जाते हैं। किन्तु यह दोनों शब्द इतने महत्व पूर्ण नहीं हैं कि इनका विशेष रूप से वर्णन किया जाता। अपवः स्कन्धाश्च। ५, २५. दुविहा पोग्गला पगणता, तं जहा-परमाणुपोग्गला नोपरमाणुपोग्गला चेव । स्थानांग स्थान २ उ० ३ सू. ८२. छाया- द्विविधौ पुदगलौ प्रमतौ। तपथा-परमाणुपुद्गलाश्च, नोपरमाणु पुद्गलाश्चैव । भाषा टीका-पुद्गल दो प्रकार के होते हैं-परमाणपुद्गल और नोपरमाणु
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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