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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः
में उन्होंने देवों के एक समूह की देव, स्नातक, पुरोहित और प्रज्वलन यह चार संज्ञाऐं की हैं, जो कि प्रकीर्णक से प्रथक् कुछ प्रतीत नहीं होते।
त्रायस्त्रिंशलोकपालवा व्यंतरज्योतिष्काः।
वाणमंतरजोइसियाणं तायतीसलोगपाला नस्थि ।
पगणवणाए बीओ पए पस्संतु अहवा जंबुद्दीवपण्णत्तीए जिणमहिमाहियारे वावमंतरजोइसियाणं च विसए पासियव्वो। छाया- व्यन्तरज्योतिष्कानां त्रायस्त्रिंशलोकपालौ न स्तः । प्रज्ञापनायाः
द्वितीये पदे पश्यन्तु । अथवा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ जिनमहिमाधिकारे
व्यन्तरज्योतिष्कयोश्च विषये द्रष्टव्यः । भाषा टोका - व्यन्तर तथा ज्योतिष्कों में त्रायस्त्रिंश और लोकपाल नहीं होते । इस विषय को प्रज्ञापना सूत्र के द्वितीयपद अथवा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के जिनमहिमाधिकार में व्यन्तर और ज्योतिष्कों के विषय में देखना चाहिये।
पूर्वयोभन्द्राः। दो असुरकुमारिंदा पन्नता, तं जहा-चमरे चेव बली चेव । दो णागकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-धरणे चेव भूयाणंदे चेव । दो सुवन्नकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-वेणुदेवे चेव वेणुदाली चेव । दो विज्जुकुमारिंदा पएणत्ता, तं जहा-हरिच्चेव हरिसहे चेव । दो अग्गिकुमारिंदा पन्नत्ता तंजहा-अग्गिसिहे चेव अग्गिमाणवे चेव। दो दीवकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-पुन्ने चेव विसिटे चेव । दो उदहिकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-जलकते चेव जलप्पभे चेव। दो दिसाकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-अमियगती चेव अमितवा