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________________ तत्त्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वय : एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहाविर्षकदैवकुरवकाः। तथोत्तराः। ३, २९. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेण दो वासा पएपत्ता....हिमवए चेव हेरन्नवते चेव हरिवासे चेव रम्मयवाते चेव'."देवकुरा चेव उत्तरकुरा चेव ... "एगं पलिओवमंठिई पएणत्ता'... "दो पलिओवमाइं ठिई पएणत्ता, तिपिण पलिभोवमाइं ठिई परखता। __जम्बू द्वीप० वक्षस्कार ४ छाया- जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरदक्षिणयोः द्वौ वर्षों प्रज्ञप्तौ ...."हैमवतश्चैव हैरण्यवतश्चैव हरिवर्षश्चैव रम्यग्वर्षश्चैव ......"देवकुरुश्चैवोत्तरकुरुश्चैव ........" एक पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता......"द्विपल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता त्रिपल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता। भाषा टोका-जम्बूद्वीप में सुमेरु पर्वत के उत्तर दक्षिण में दो क्षेत्र बतलाये गये हैंहैमवत और हैरएयवत । हरिवर्ष और रम्यक् वर्ष । देवकुरु और उत्तरकुरु । इनकी आयु क्रमशः एक पल्य, दो पल्य और तोन पल्य होती है। संगति - जघन्य भोगभूमि हैमवत और हैरण्यवत में एक पल्य आयु होती है। मध्यम भोगभूमि हरिवर्ष और रम्यक् वर्ष में दो पल्य की मायु होती है। तथा उत्तम भोग भूमि देवकुरु और उत्तर कुरु में तीन पल्य की आयु होती है। विदेहेषु संख्येयकालाः।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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