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________________ ८२ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : सरोवर के समान हैं । इसके अन्दर दो योजन का कमल है । जिसके अन्दर एक पल्य आयु वाली ही देवी रहती है। (तीसरा) तिगिंछ सरोवर है। यह चार योजन लम्बा, दो योजन चौड़ा और दस हजार योजन गहरा है । इसमें एक पल्य की आयु वाली धृति देवी रहती है। तन्निवासिन्यो देव्यः श्रीह्रीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः पल्योपमस्थितितयः ससामानिकपरिषत्काः॥ ३, १६. तत्थ णं छ देवयाओ महड्ढियाओ जाव पलिओवमद्वितीतातो परिवसंति । तं जहा-सिरि हिरि घिति कित्ति बुद्धि लच्छी। स्थानांग स्था०६, सू० ५२४. छाया- तत्र षट् देव्यः महर्द्धिकाः यावत् पल्योपमस्थितिकाः परिवसंति । __ तद्यथा-श्रीः ही धृतिः कीर्तिः बुद्धिः लक्ष्मीः। भाषा टीका - उन (कमलों ) में बड़े ऐश्वर्य बाली तथा एक पल्य आयु वाली छै देवियां रहती हैं । वह यह हैं- श्री, ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी । गंगासिन्धुरोहिद्रोहितास्याहरिद्वरिकांतासीतासीतोदानारीनरकान्तासुवर्णरूप्यकूलारक्तारक्तोदाः सरितस्तन्मध्यगाः। ३, २०. द्वयोर्डयोः पूर्वाः पूर्वगाः॥ १, २१. शेषास्त्वपरगाः॥
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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