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________________ [ अ ] इस ग्रंथ में सूत्रों का आगमों से समन्वय किया गया है। इसमें पहिले तत्त्वार्थ सूत्र का सूत्र, फिर श्रागम प्रमाण, उसके पश्चात् उस आगम पाठ की संस्कृत छाया और अंत में आगम पाठ की भाषा टीका दी गई है, जिससे पाठकवर्ग आगम और सूत्र के शब्द और अर्थों का भली प्रकार ज्ञान प्राप्त कर सकें 1 सूत्रों के सामान्य अर्थ इस ग्रंथ के अंत में परिशिष्ट नं० २ में दे दिये गये हैं । यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस ग्रन्थ में दिये हुए आगम प्रमाण आगमोद्धार समिति द्वारा मुद्रित हुए आगमों से दिये गये हैं । पाठकों के सन्मुख सूत्र के पाठ से आगमों के पाठ का यह समन्वय उपस्थित किया जाता है । यदि आगम ग्रंथ के कोई विद्वान समन्वय में कहीं त्रुटि समझें तो उसको स्वयं समन्वय कर पूर्ण पाठ से अवगत करने की कृपा करें । क्योंकि - 'सर्वारम्भाहि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः । ' यह ग्रन्थ इतना महत्त्वपूर्ण है कि प्रत्येक व्यक्ति के स्वाध्याय करने योग्य है । वास्तव में यह तत्वार्थसूत्र आगमग्रन्थों की कुंजी है । अतः जिन २ विद्यालयों, हाईस्कूलों और कालेजों में तत्त्वार्थसूत्र पाठ्यक्रम में नियत किया हुआ है उन २ संस्थाओं के अध्यक्षों को योग्य है कि वह सूत्रों के साथ ही साथ बालकों को आगम के समन्वय पाठों का भी अध्ययन करावें । जिससे उन बालकों को श्रागमों का भी भली भांति ज्ञान हो जावे । कुछ लोग यह शंका भी कर सकते हैं कि 'संभव है कि श्वेताम्बर आगमों में तस्वार्थसूत्र के इन सूत्रों की ही व्याख्या की गई हो ।' सो इस विषय में यह बात स्मरण रखने की है कि जैन इतिहास के अन्वेषण से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि आगम ग्रन्थों का अस्तित्त्व उमास्वाति जी महाराज से भी पहिले था । इसके अतिरिक्त तस्वार्थसूत्र और जैन आगमों का अध्ययन करने से यह स्वयं ही प्रगट हो जावेगा कि कौन किस
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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