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________________ करता हूँ, तब विष्णुसे महादेवजीने कहा चक्र यहां स्थिर रहो, तुम दैत्योंके मुखच्छेदन करो, मैं इससे भी महाघोर चक्र तेरेको कथन करता हूं, यह कह कर शिवजीने दिव्य कालानल चक्रको विष्णुके प्रति दे दिया, घोर दस हजार सूर्यके समान कान्तिमान दुसरे सुदर्शन चक्रको भगवान् विष्णु प्राप्त होकर देवताओंसे बोले, पातालमें यौवनवती स्त्री विद्यमान है, उनके साथमें जो क्रिया करतें हैं सो करो, संपूर्ण देवयोनी केशवके वचन सुन कर विष्णुके सहित पातालमें प्रवेशकी ईच्छा करके चली, उसी समय भगवान् शिवजी उनकी चेष्टा जान करके यह अप्सराओंको हरण करेंगे, उन आठ योनिओंको शाप देते हुए कि शांत मुनि दानव और मेरे अंशसे उत्पन्न हुओंको छोड कर जो इस स्थानमें प्रवेश करेगा वह उसी समय नष्ट हो जायगा, इस मनुष्यके हित करनेवाले घोर शापको सुन कर रुद्रसे तिरस्कृत होकर देवता अपने घरको आगये, इत्यादि वर्णनसे साफ सिद्ध हो गया कि विष्णु ब्रह्मादि देव कामदेवके वशीभूत थे, तथा विष्णु पातालमें जाकर उन स्त्रीओंसे भोग भोगने लगे, और पुत्र भी उत्पन्न कियें, तो भी विष्णु उन स्त्रीयोंको छोड कर अपनी इच्छासे नहीं आयें, अंतमें ब्रह्माजीने शिवजीको कहा कि तुम स्वर्गकी रक्षाके निमित्त विष्णुको लावो, इस पूर्वोक्त लेखसे बुद्धिमान् खुद समझ लेंगे कि विष्णु कैसे कामी थें ?, और शिवजी बलदकारूप धारण करके महाशब्द करते हुए वहां गए, उनके इन शब्दोंसे पूरोंके अंत:पुर पड गए, तथा हरिके पुत्र लडनेको आये, उनको अपने खुरोंसे तथा शृंगोंसे फाड डालें, इत्यादि शिवजीके अविचारित
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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