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________________ (१३) श्रीकृष्ण दैत्य और देवताओंका अस्त्र शस्त्रोंसे युद्ध हुआ, परस्पर एक दूसरोंको मारने लगे तब दैत्य लोक विष्णु भगवान् और देवताओंसें मारे गये, मरणसें बचे हुए पातालमें प्रवेश कर गये, विष्णु उनके पिछे हुए, उस समय विष्णुने अमृतसे उत्पन्न हुई अप्सराओंको देखा, जिनका पूर्णचंद्रमाके समान मुख था और जिससे वे दिव्यलावण्यतासे गर्वित थीं, उनको देख कर काम बाणसे विद्ध हो विष्णुने परमसुख माना और उन दिव्यस्त्रीयोंके संग क्रोडा करने लगे, उनके महावली पराक्रमी पुत्र हुए जो युद्धमें बडे पंडित और पृथ्वी कंपित करने वाले थे, इसी अवसरमें ब्रह्माने शिवजीको कहा कि स्वर्गकी रक्षाके निमित्त विष्णुजीको लाओ तब शिवजी बळदकारूप धारके गर्जना करते महाभयंकर शब्द करते हुए उस विवरमें प्रविष्ट हुए, उनके शब्दसे पुरोंके अंतःपुर पंड गये, तब क्रोध कर अप्सराओंसे उत्पन्न हुए हरिके पुत्र संग्राम करनको तैय्यार हुए, उनको रुद्ररुपसें खूर और शृंगोंसे विदीर्ण किया, उनके मृत्युको प्राप्त होने पर विष्णु शिवकी समीप गयें, तब केशवने शिवजोको दिव्य अस्त्र और बाणोंसे ताडन किया, शिवजी विष्णुके संपूर्ण अत्रोंका ग्रास कर गये, जब नारायणने जाना कि जगत्पति गौरीश आगये हैं, तब गंभीर वाणीसे बोले, भगवान् ! क्षमा करो, उनके वचन सुन कर शंकर बोले तुम क्यों नहीं अपनको जानते कि तुमही विश्वके कारन हो, तुमको इस विषयमें रति नहीं करनी चाहिये, हमारी आज्ञासे निवृत्त हो यह सुन कर लज्जित हो विष्णुने महेश्वरसे कहा, मेरा यहां चक्र है मैं उसको शिघ्रतासे ग्रहण
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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