SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११२) देखिये-पद्मपुराण क्रियायोगसारे सप्तमखंड गंगासामरसंगम माहात्म्य वर्णन नाम अध्याय ६ पत्र १४ वे में लिखे हुए श्लोकसे भी वेदोमें हिंसा करना साबित है. देखो " वेदा विनिन्दिता येन, विलोक्य पशुहिंसनम् । सकृपेन त्वया येन, तस्मै बुद्धाय ते नमः॥" भावार्थ-वेदोंमें पशुओंकी हिंसाका बहुत बयानहोनेसे विष्णुने पशुओंकी हिंसाको देखकर पशु पर दया लाकर बुद्धावतार धारण किया और वेदोंकी निन्दा की. इस पद्मपुराणके पाठसे भी वेद हिंसकक्रियाके निरूपक सिद्ध हुए, ऐसे ही देवीभागवत महापुराणके प्रथम स्कंधके १८ वे अध्यायमें शुकजीने राजा जनकसे जो कथन किया है, उस कथनसे भी वेदोंमें जानवरोंका मारना, मदिरा पान करना, जूआ खेलना, मांस भक्षण करना इत्यादि साबित होता है, तथा यज्ञमें इतने जानवर मरते थे कि जिनके चमडोंका पहाड बन जाता था. __पद्मपुराण ब्रह्मखंड ४ अध्याय १२ वेमें गालव नामके मुनिने नरमेध यज्ञ करनेका उपदेश किया है, बारवा अध्याय इसी विषयको वर्णन करता है, इससे सिद्ध होता है कि ब्राह्मणोंके ऋषिलोग नरमेध यज्ञ ( मनुष्यका मारने )को भी अत्यंत ही अच्छा मानते थे, ऐसी बडी बडी हत्याओंका उपदेश जिन शास्त्रोंमें किया है उन शास्त्रोंको सत्य मानकर वेद बडे हैं, बड़े हैं, ऐसे पुकारे जाना क्या फायदा ?, ये लोग
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy