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________________ (११०) चले जाते हैं, अधोगतिके पात्र बनेंगे. परंतु हमारे इस लेखसे किसी भी जीवका उद्धार हो और सन्मार्गमें चले यही इरादा हमें इस कार्यको करा रहा है, नहीं तो कितने ही भोले श्रद्धालु इस पुस्तकसे भडकेंगे और हमको इस विषयमें कितनोक बाबत सहन भी करनी पडेगी, ऐसे जानते हुए हम इस प्रयत्नको कदापि नहीं कर सकते थे. महाभारत वन पर्व अध्याय २०८ वे में" राज्ञो महानसे पूर्व, रन्तिदेवस्य वै द्विज !। द्वे सहस्रे तु बध्येते, पशूनामन्वहं तदा ॥८॥ अहन्यहनि वध्येते, द्वे सहस्रे गवां तथा । समांसं ददतो ह्यन्नं, रन्तिदेवस्य नित्यशः ॥९॥ अतुला कीर्तिरभव-न्नृपस्य द्विजसत्तम ! । चातुर्मास्ये च पशवो, वध्यन्त इति नित्यशः ॥ १० ॥" भावार्थ हे ब्राह्मण ! रंतिदेव राजाके महानस-रसोडेमें निरन्तर दोहजार अन्य पशु और दोहनार गाएं मारी जाती थीं और हमेशह मांसके साथ अन्न दिया जाता था, जिससे उस राजाकी अतुलकीर्ति सर्वत्र फैली हुई थी. देखिये ! कैसी धुरी बात है ? और वैदिकोंके शास्त्रोंकी अस्त व्यस्त व्यवस्था कैसी बिगड गइ है ?, एक तरफ गौ रक्षाका उपदेश और एक तरफ दोहजार गाएं मरानेवाले रंतिदेवकी अतुलकीर्ति हुई थी कहकर पापकर्मका अनुमोदन करना कितने अफसोसकी बात है ?. ____ अगाडीके श्लोकोमें ब्राह्मणलोग अपने हाथोंसे पशुओंका वध करते थे ऐसा उल्लेख है तथा ब्राह्मणको मांस लेनेका
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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