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________________ (१०३) ऐसे कहे जाने पर भी क्रुद्ध होकर ब्रह्माजीको शाप देनेको उद्यत हुई ॥४४॥ यह बनाव ब्रह्माजीको किस दर्जेके कामी साबित करता है ? सो हमारे पाठक स्वयं समझ जायेंगे और ऐसे स्त्रीओंके पांवमें पडनेवाले और भागवत तृतीय स्कंध अध्याय ३१ के पत्र ९८ के ३३ वे श्लोक" प्रजापतिः स्वां दुहितर, दृष्ट्वा तद्रूपधर्षितः । रोहितभूतां सोऽन्वधाव-दृक्षरूपी हतत्रपः ॥ ३३ ॥" के अनुसार अपनी पुत्रीके साथ भी भोग करनेको तत्पर होनेवाले, शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय १८ श्लोक ६२ -६३-६४ वे में " प्रदक्षिणं तथा चाग्ने-श्चतुर्धा च कृतं तदा । ब्रह्मणः स्खलनं जातं, शिवांगुष्ठप्रदर्शनात् ॥ ६२ ॥ तद्गोपितं तदा तेन, बुत्संगे पतितं च यत् । ततो जातास्त्वसंख्याता, बटुका ब्रह्मसूत्रकाः ॥ ६३ ।। जटादंडधरास्ते च, बद्धकच्छाः सहस्रशः। नमस्कृत्य च ब्रह्माणं, स्थितास्ते तु तदग्रतः ॥ ६४ ॥" लिखे मुजब महादेवजी के लग्नमें पार्वतीके अंगुठेके रूपको देखकर अति कामसे वीर्य निकाल देनेवाले परमात्मा है या कामात्मा ? सो भी विचार लेंगे, हमको सख्त अफसोस इन ग्रंथों के रचनेवालों पर है कि जिसे प्रभु मानते हैं उसे ऐसे चरित्र लिख कर पामर बना डाला है और मिथ्यात्वने पूरी सहायता दी है जिससे अपने गड्डेको अभी तक चलाये जाते हैं अन्यथा जरा भी विज्ञान
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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