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________________ (१०१) वैदिक हिंसाके कारन वैदिकतत्त्वको नहीं माननेवाले जैनधर्मको वाममार्गीओंका असर हुआ , इत्यादि लिख कर वैरानल शान्त किया, अस्तु, कुछ हानि नहीं, हमारे 'ठक्कुर' शांत तो हुए, इतनी ही हमको खुशी मानना चाहिये, वेशक, खुश होना चाहिये मगर उनकी इस पाप कर्मसे होनेवाली बुरी गतिका खयाल खुश नहीं होने देता, तथा ४२-४३ वें पृष्ठ पर-" शरायायने तेमनी भाताना ये वर्णश २ સંતાન તરીકે ઓળખાવે છે. અને તેમની માતા શ્રી મહાદેવને વર્ણશંકર પ્રજાને ઉત્પન્ન કરવાના અપરાધ માટે જાતિ બહિષ્કૃત થવું પડયું હતું એમ જણાવેલું છે, પરંતુ આ વિધાનમાં અધિક સત્યાંશ હોય એવી અમારી માન્યતા નથી.” ઈત્યાદિ, ऐसे अपने माने हुए विषयमें दोष आवे तो 'अमारी मान्यता नथी' ऐसा लिख देना और मेरुतुंगाचार्य महाराजने शिला. दित्यको जैनराजा लिखा है इस सत्यांशको भी अपनी मनोकल्पनासे विरुद्ध होनेके कारण कह दिया कि काल्पनिक है, पक्षपातकी भी कुछ हद है !, अरे मिथ्यात्व ! तूं क्या क्या नाच नहीं नचाता ?, भगवन् ! वे लोक भी वस्तुको वस्तु समझ कर रास्ते पर आवे और सत्य द्वेषको जलांजलि देवे यही अभिलाषा है लो अब टाईम बहुत हो गया है इस लिये अव तो बन्द रखते हैं. 2..
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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