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________________ (१००) बिन प्रमाण बहता है कि पवित्र जैनदेवालयोंमें अद्यावधि ऐसा अनुचित वर्ताव कदापि न होनेका जैनोंको ही नहीं बल्के मध्यस्थ इतिहासज्ञ जैनेतरोंको भी पूर्ण विश्वास है और जैनेतरोंके मंदिरोंमें रात्रिको जल्दी उठ कर स्त्रीयोंका जाना और वहां कृष्णलीलाका अनुभव लेना मध्यस्थ जैनतर भी कबूल करते हैं ऐसे उनके कृष्णालय शिवालय तो तांत्रिकमतके असरसे खाली रह गये और धर्मस्थान ही बने रहे और बौद्ध तथा जैनमंदिर अधर्मस्थान हो गये थे, द्वेषकी भी कुछ सीमा है, वाहरे ! मिथ्यात्व ! तूं तो सचमुच उल्लु ही बना देता है, अन्यथा प्रकाशको अंधकार और अंधकारको प्रकाश कैसे कहें १, भला! जिस शंकराचार्यको जैनमतके तत्त्वकी गंध भी नहीं लगी थी ऐसा उनके जैनतत्त्वों पर लिखे हुए विवेचनसे सिद्ध होता है, उस शंकराचार्यके नामसे जैन भडके यह सफेद झूठ नहीं तो और क्या है ?, पृष्ठ ५२ पर " एक यतिने वल्लभीनगरके मध्यमें रहे हुए शिवालयको तुडवाकर और उसके बराबर चांदी देकर जैनमंदिर बनवाया" यह बेपायेदार बात लिखी है ऐसा हमारा अनुभव हमको साक्षी देता है और यह लेख दूसरे लोकोंको भडकानेके लिये लिखा गया हो ऐसी कल्पना करता है, ठकुर शंकराचार्यके रंगमें ऐसे रंगे गये हैं कि उनकी तारीफके पूल बांधने के लिये ही शायद यह नोवेल रचा गया हो तो भी अत्युक्ति नहीं मगर साथमें उनको नहीं माननेवाले बौद्ध जैनको खूब बुरा भला न कह लेवे वहां तक वो पूल मजबूत नहीं बन सकता था, अतः वो भी काम कर लिया पवित्र जैनधर्मको वाममार्गका समूलोच्छेद करनेवाले जैनधर्मको
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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