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________________ (८८) देवसे आत्मोद्धारको आशा रखना पानीमेंसे मक्खनकी आशा जैसा है. भागवत स्कंध १८ अध्याय ९ वे में स्त्रीका रूप बना कर भगवान्ने दैत्योंको ठगा ऐसा लिखा हुआ है, इससे भी कृष्णजी परमात्मा थे ऐसा सिद्ध नहीं होता है, क्यों कि स्त्रीरूप धारके किसीको प्रपंचपासमें फसाना ऐसा कृत्य परमात्मा संभव नहीं होता. और इसी स्कंधके १० वे अध्यायमें लिखा है कि- . देव और दैत्योंका परस्पर युद्ध हुआ उसमें देवोंकी हार हुई, तब देवोंने भगवान्का स्मरण किया, भगवान्ने आकर कितनेक दैत्योंका नाश कर डाला. ___ यहां पर स्वाभाविक ही यह विचार उत्पन्न होता है कि दैत्योंका नाश करनेवाले कृष्णजीमें दयाका लेश भी था ऐसे कैसे माना जा सकता है ?, क्यों कि कृष्णजीके भक्तोंके मानने मूजब कृष्णजी सर्वशक्तिमान् गिने जाते हैं तो उनको अपने स्थानमें रहे हुए दैत्योंकी बुद्धिका सुधारा करके स्मरण करनेवाले अपने भक्तोंका रक्षण करना चाहिये था, अगर ऐसी शक्ति नहीं थी ऐसा कहा जावे तब सर्वशक्तिमत्ताका लोप होता है और शक्ति होने पर मारनेका मार्ग घातकवृतिका सूचक है, अगर इस प्रकारके न्याय युक्त विचार अंधभक्तोंका हो जाय तो पुराणकी मायावी कल्पनासे क्षण मात्रमें छूट सके ऐसा हमारा मानना है. . भागवत स्कंध १८ अध्याय १२ वे में बयान है कि
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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