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________________ उमास्वातिकृत प्रशमरतिप्रकरण : एक अध्ययन 235 गया है। रत्नप्रभा आदि सात नरक ही सप्तविध अधोलोक हैं । तिर्यग्लोक जम्बूद्व प आदि के भेद से अनेक प्रकार का तथा ऊर्ध्वलोक में सौधर्मादि के दशकल्प, ग्रैवेयक के तीन, महाविमान का एक तथा ईषत्प्राग्भार का एक, इस प्रकार 15 प्रकार का लोक है। आत्मा के आठ प्रकार आत्मा के द्रव्य, कषाय, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य की मार्गणा के आधार पर आठ प्रकार का कहा गया है। जीव की भांति अजीव की भी द्रव्यात्मा स्वीकार की गई है। सकषाय जीवों के कषायात्मा, सयोगियों के योगात्मा, समस्त जीवों के उपयोग आत्मा, सम्यग्दृष्टि के ज्ञानात्मा, सब जीवों के दर्शनात्मा, विरत जीवों के चारित्रात्मा तथा समस्त संसारी जीवों के वीर्यात्मा कही गई है। आत्मा शब्द का प्रयोग चेतन के लिए होता है तथापि अजीव पुद्गल आदि के लिए 'आत्मा' शब्द का प्रयोग नय विशेष से किया जा सकता है, ऐसा प्रशमरतिकार ने निरूपित किया है। 23 अष्ट मद जाति, कुल, रूप, बल, लाभ, बुद्धि, वाल्लभ्य और श्रुत मदों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इन मदों के कारण विवेकहीन हुए मनुष्य इहलोक और परलोक में हितकारी अर्थ को भी नहीं देखते हैं। प्रशमरतिप्रकरण में इन सभी मदों को त्यागने की प्रेरणा की गई है। उदाहरण के लिए कुलमद को त्यागने की प्रेरणा करते हुए कहा गया है कि जिसका शील दूषित है, उसको कुलमद करने से क्या प्रयोजन है? और जो अपने गुणों से अलङ्कृत एवं शीलवान् है उसको भी कुल का मद करने से क्या प्रयोजन है? इन आठ प्रकार के मदस्थानों में निश्चय से कोई गुण नहीं है, केवल अपने हृदय का उन्माद और संसार की वृद्धि है। यह भी कहा गया है कि जाति के मद से उन्मत्त मनुष्य पिशाच की भाँति यहाँ पर भी दुःखी होता है और परलोक में भी जाति आदि की हीनता को प्राप्त करता है। आगम एवं कर्मसिद्धान्त में अष्टविध मद को नीच गोत्रकर्म के बन्धन का कारण निरूपित किया गया है। उमास्वाति ने कहा है कि समस्त मदों के मूल का नाश करने के लिए अपने गुणों का गर्व और पर - निन्दा को छोड़ देना चाहिए । जो दूसरों का तिरस्कार एवं उनकी निन्दा करता है तथा अपनी प्रशंसा करता है वह अनेक भवों में भोगने योग्य नीच गोत्र का बन्ध करता है।
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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