SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 200 Studies in Umāsvāti आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने पंचास्तिकाय में द्रव्य के लक्षण में यह गाथा लिखी है - दव्वं सल्लक्खणियं उप्पादव्वयधुवत्तसंजुत्त। गुणपज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्हू।। - गाथा 10 गृद्धपिच्छ ने तत्त्वार्थसूत्र में इस गाथा के आशय को इन तीन सूत्रों में प्रस्तुत किया है 1. सद्रव्यलक्षणम्-(5/29) 2. उत्पादव्ययधौव्ययुक्तं सत्-(5/30) 3. गुणपर्यायवद् द्रव्यम्-(5/38) कुन्दकुन्द आचार्य ने दर्शन, ज्ञान और चारित्र को नियम कहा है और उन्हें मोक्ष का उपाय/मार्ग कहा है। नियमसार की इस विषयक गाथाओं के आधार पर गृद्धपिच्छ ने तत्त्वार्थसूत्र का प्रथम सूत्र बनाया है- 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः'। कुन्दकुन्दाचार्य के 'सार' पद और तत्त्वार्थसूत्र के इस सूत्र में 'सम्यक्' पद का प्रतिपाद्य एक ही है - मिथ्यादर्शन आदि का परिहार करना। आचार्य कुन्दकुन्द ने सम्यग्दर्शन की परिभाषा दी है अत्तागमतच्चाणं सद्दहणादो हवेइ सम्मत्तं। -नियमसार, 5 तत्त्वार्थसूत्र में प्राप्त 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' सूत्र उक्त प्राकृत गाथांश का संस्कृत अनुवाद प्रतीत होता है। आचार्य कुन्दकुन्द ने प्रवचनसार में परोक्ष और प्रत्यक्ष ज्ञान की परिभाषा दी है जं परदो विण्णाणं तं तु परोक्ख त्ति भणिदमत्थेसु। जदि केवलेण णादं हवदि हि जीवेण पच्चक्ख।। -ज्ञानाधिकार, 58 तत्त्वार्थसूत्र में पांच ज्ञानों को प्रमाण मानकर उनके प्रत्यक्ष और परोक्ष भेद बताने के लिए ये सूत्र प्राप्त होते हैं 1. मति श्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानि ज्ञानम्। 1/9 2. तत्प्रमाणे 1/10 3. आद्ये परोक्षम् 1/11 4. प्रत्यक्षमन्यत 1/12 आचार्य कुन्दकुन्द ने पंचास्तिकाय (गा. 56) में जीव के पांच भावों का निरूपण किया है उदयेण उवसमेण य खयेण दुहिं मिस्सदेहिं परिणामे। जुत्ता ते जीवगुणा बहुसु अत्थेसु विच्छिण्णा।।
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy