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________________ आचार्य कुन्दकुन्द और गृद्धपिच्छ उमास्वामी : एक विमर्श 199 उमास्वाति ने भी मूलसूत्रकार गृद्धपिच्छ का नाम अंकित किये बिना ही भाष्यकार के रूप में मात्र अपना नाम दिया है। बाद में मूलसूत्र और भाष्य दोनों के लेखक वाचक उमास्वाति को मान लिया गया होगा। ___ दिगम्बर परम्परा में आचार्य वीरसेन ने धवलाटीका में तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता के रूप में गृद्धपिच्छ का नामोल्लेख किया है। किन्तु बाद की दिगम्बर परम्परा में गृद्धपिच्छ के साथ उमास्वाति का नाम भी अभिलेखों आदि में अंकित है। इससे प्रतीत होता है कि जब सर्वार्थसिद्धि टीका के बाद और आचार्य वीरसेन के अनन्तर वाचक उमास्वाति ने अपना भाष्य लिख दिया होगा, तब दिगम्बर परम्परा में भी गृद्धपिच्छ के साथ उमास्वाति नाम प्रचलित हो गया होगा, जो श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में अंकित है। तत्त्वार्थसूत्र जैनदर्शन का सारभूत ग्रन्थ है। दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा दोनों में यह मान्य है। अतः ग्रन्थ की गरिमा और महत्ता तथा जैन संस्कृति की अनेकान्तमयी छवि की सुरक्षा की दृष्टि से तत्वार्थसूत्र के कर्त्ता ओर भाष्यकार का दो अलग-अलग लेखक स्वीकार किया जाना चाहिए। इससे दोनों परम्परा के प्राचीन आचार्यों के क्रम, काल-समय आदि यथास्थान बने रहेंगे। इससे तत्त्वार्थसूत्र के विषय के विकास-क्रम को सही ढंग से समझने में मदद मिलेगी। आचार्य कुन्दकुन्द एवं उमास्वामी के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध माना जाता है। प्राचीन परम्परा के अतिरिक्त कुन्दकुन्द साहित्य को दृष्टि में रखकर उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र का प्रणयन किया है। परिणामस्वरूप कुछ सूत्र शब्दशः और कुछ अर्थशः कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थों से अपना सम्बन्ध रखते हैं। विद्वानों ने इस विषय में तुलनात्मक अध्ययन के लिए कुछ संकेत दिये हैं।12 __कुन्दकुन्द साहित्य के वाक्यों के साथ तत्वार्थसूत्र के सूत्रों को सामने रखकर कुछ समानता इस प्रकार देखी जा सकती हैकुन्दकुन्दाचार्य तत्त्वार्थसूत्र 1. दंसण णाणचरित्ताणिमोक्खमग्गो, सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः -1.1 पञ्चास्तिकाय. 164 2. दव्वं सल्लक्खणियं, वही. 10 - सद्रव्यलक्षणम् -5, 29 3. फासो रसो य गन्धो वण्णो स्पर्शरसगंधवर्णवन्तः पुद्गलाः -2.21 . सद्दो य पुग्गला, -प्रवचन. 156 4. आगासस्सावगाहो, -प्रवचन. 2/41 आकाशस्यावगाहः -5, 12 5. आसवणिरोहो संवरो, -समयसार, 166 आश्रवनिरोधः संवरः –9.1 6. देवा चउण्णिकाया, पंचा० 2/118 देवाश्चतुर्निकाया, 4.1
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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