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________________ आगम-साहित्य में पुद्गल एवं परमाणु विश्व में जीव को आकर्षित करने वाला सबसे बड़ा साम्राज्य पुद्गल का है। मोबाइल एवं टी.वी. हो या इनकी तरंगें, सोनोग्राफी एवं एक्सरे की किरणें हो या सूर्य की किरणें, मधुर संगीत हो या सुन्दर रूप, फ्रिज हो या कूलर, भवन हो या फर्नीचर, पेन हो या पुस्तकें सभी पुद्गल हैं। हमारा शरीर, हमारी भोज्यसामग्री आदि सभी पुद्गल हैं। पुद्गल ठोस, द्रव, गैस, तरंग, ऊर्जा आदि विभिन्न रूपों में रहता है। यह परमाणु, स्कन्ध आदि किसी भी आकार में हो सकता है। पुद्गल का वैशिष्ट्य है कि वह स्पर्श, रस, गंध एवं रूप से युक्त होता है। ये स्पर्शादि जब उत्कट होते हैं तो हम इन्हें इन्द्रियों से जान लेते हैं तथा जब ये सूक्ष्म होते हैं तो इन्द्रियों से ग्राह्य नहीं होते। परमाणु भी स्पर्श, रस आदि गुणों से युक्त होता है। जैन दर्शन में प्राणातिपात आदि पापों को भी पुद्गल माना गया है। पुद्गल हमारे सुख, दुःख, जीवन, मरण, प्राण, अपान, भाषा, मन आदि सबमें हमारा उपकार करते हैं। आत्मा को बंधन में डालने वाले कर्म भी पुद्गल ही हैं। पुद्गलों की विभिन्न अवस्थाओं पर प्रस्तुत आलेख में आगम-साहित्य के आधार पर प्रकाश डाला जा रहा है। जैन दर्शन में पुद्गल एक द्रव्य है। द्रव्य के छह प्रकार प्रतिपादित हैंधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, जीवास्तिकाय एवं पुद्गलास्तिकाया इनमें पुद्गल द्रव्य को रूपी अथवा मूर्त माना गया है तथा शेष पाँच द्रव्य अरूपी एवं अमूर्त हैं। पुद्गल में रूप, रस, गन्ध एवं स्पर्श गुण होने के कारण इसे रूपी अथवा मूर्त स्वीकार किया गया है। पुद्गल का स्वरूप आधुनिक विज्ञान में पदार्थ (Matter), परमाणु (Atom), ऊर्जा (Energy) और तरंगों (Waves) का जो निरूपण प्राप्त होता है, जैनदर्शन में वह पुद्गल के विवेचन का विषय है। स्थानांगसूत्र, व्याख्याप्रज्ञप्रिसूत्र, प्रज्ञापनासूत्र, जीवाजीवाभिगमसूत्र आदि आगमों में तथा नियमसार, प्रवचनसार, गोम्मटसार,बृहद्रव्यसंग्रह आदि एवं तत्त्वार्थसूत्र और उसकी टीकाओं में पुद्गल का पर्याप्त विवेचन हुआ है। संक्षेप में कहें तो जो पूरण एवं गलन स्वभावी होता है, वह पुद्गल है।' पूरण का अर्थ है
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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