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________________ जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन छठा पदार्थ मानते हैं। ये आत्मा को शाश्वत मानते हैं। जिस प्रकार आकाश सर्वव्यापी और अमूर्त होने से शाश्वत है उसी प्रकार आत्मा भी सर्वव्यापी तथा अमूर्त होने से शाश्वत है। इनके मत का उल्लेख करते हुए सूत्रकृतांग में कहा गया है संति पंच महब्भूया, इहमेगेसिं आहिया। आयछट्टो पुणो आहु, आयालोगेयसासए।।" (पाँच महाभूत हैं। किन्हीं के द्वारा आत्मा को छठा पदार्थ कहा गया है। इनमें आत्मा एवं लोक (पंच महाभूत) शाश्वत हैं।) इस मत में आत्मा को पंच महाभूतों से स्वतन्त्र स्वीकार किया गया है तथा पंच महाभूतात्मक, लोक एवं आत्मा को शाश्वत अंगीकार किया गया है। आत्मा भी शाश्वत है एवं लोक भी शाश्वत है। पंच भूतों से चैतन्य की उत्पत्ति मानने वाले चार्वाक के मत में जहाँ पंचभूत एवं उनसे उत्पन्न चैतन्य अनित्य है वहाँ आत्मषष्ठवाद मत में पांचों भूतों एवं आत्मा को नित्य स्वीकार किया गया है। मात्र पंचभूतों एवं आत्मा इन छह द्रव्यों या पदार्थों को मानने वाला वर्तमान में कोई दर्शन प्रचलित नहीं है। हाँ, वैशेषिक दर्शन में मान्य नौ द्रव्यों के अन्तर्गत इन छहों का समावेश हो जाता है। वैशेषिक दर्शन में नौ द्रव्य अंगीकृत हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा और मन। इनमें पूर्वोक्त छहों द्रव्य समाविष्ट हैं। किन्तु वैशेषिक दर्शन में आत्मा एवं आकाश को पूर्णतः नित्य स्वीकार किया गया है, जबकि पृथ्वी, जल, अग्नि एवं वायु के परमाणुओं को नित्य तथा कार्यरूप पृथ्वी आदि को अनित्य माना गया है। सांख्य दर्शन के पच्चीस तत्त्वों में भी पंचभूतों का प्रकृति में तथा आत्मा का पुरुष तत्त्व में समावेश होता है। सांख्य दर्शन में पुरुष नित्य है, जबकि पृथ्वी आदि पंचभूत कार्य अथवा विकृति रूप होने से अनित्य हैं। मीमांसा दर्शन में भी पंचभूत एवं आत्मा को स्वीकृत किया गया है, किन्तु इनके अतिरिक्त भी पदार्थ स्वीकार किए गए हैं। अतः यह आत्मषष्ठवाद कोई प्राचीन मत रहा है, जिसका अभी स्वतन्त्र अस्तित्व दृग्गोचर नहीं होता है। सूत्रकृतांग में आत्मषष्ठवाद की अन्य विशेषताओं को निम्नांकित गाथा में प्रस्तुत किया गया है
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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