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________________ 484 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन जैन परम्परा में तन्त्रागमों के प्रभाव से अनेकविध मन्त्रों का समावेश हुआ, यथा-अग्निस्तम्भनमन्त्र, दुष्टजनस्तम्भनमन्त्र, शत्रुसेनास्तम्भनमन्त्र, स्त्री-आकर्षण सम्बन्धी मन्त्र, वशीकरण मन्त्र, सर्पदंशजनितविषापहार मन्त्र, तस्करभयहर मन्त्र, बन्दिविमोचन मन्त्र, व्याल-वृश्चिक-मूषकादिदूरीकरण मन्त्र, ग्रहशान्ति मन्त्र, परिवाररक्षामन्त्र, बुद्धिवर्धकमंत्र ऐश्वर्यदायक मन्त्र, रोगनिवारक मन्त्र, भूतप्रेतादिनिवारण मन्त्र आदि। इन मन्त्रों में तन्त्र का प्रयोग साथ ही योजित है । तन्त्र की दृष्टि से सिंहतिलकसूरि के मन्त्रराजरहस्य, जिनप्रभसूरि के विधिमार्ग प्रपा, मल्लिषेणसूरि के भैरवपद्मावतीकल्प और आचार्य कुंथुसागर के लघुविद्यानुवाद का नाम उल्लेखनीय है। तन्त्र को यदि आध्यात्मिक विकास की साधना माना जाए तो उसका स्वरूप तो आचारांग, सूत्रकृतांग, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि आगमों में समुपलब्ध है, किन्तु जब इसे लौकिक एषणाओं की पूर्ति के साथ जोड़ा जाता है तो उवसग्गहरस्तोत्र, भक्तामरस्तोत्र, विषापहारस्तोत्र ज्वालामालिनी कल्प, निर्वाण कलिका, एकीभावस्तोत्र, प्रतिष्ठातिलक, सूरिमन्त्रकल्प आदि प्रमुख ग्रन्थ हैं । नमिऊण स्तोत्र, नमस्कार मंत्रस्तव आदि भी तान्त्रिक स्तोत्र हैं। तन्त्र, मन्त्र के साथ यन्त्रों का प्रयोग भी जैन परम्परा में पर्याप्त रूप से दृग्गोचर होता है । ज्यामितीय आकृतियों में निर्मित यन्त्रों में विविध मन्त्र, बीजाक्षर एवं संख्याएँ निश्चित क्रम में अंकित रहते हैं । यन्त्रों को लौकिक कामनाओं के लिए या तो धारण किया जाता है या फिर उनका पूजन किया जाता है। बीजाक्षर एवं मन्त्रों से युक्त यन्त्रों में ऋषिमण्डल, परमेष्ठिविद्यामंत्र आदि प्रसिद्ध हैं। मात्र संख्याओं से युक्त यन्त्रों में नमस्कारमन्त्र की आनुपूर्वी, पैंसठिया यन्त्र आदि प्रसिद्ध हैं । जिन्हें धारण किया जाता है वे धारण यन्त्र तथा जिन्हें पूजा जाता है वे पूजायन्त्र कहे जाते हैं। भक्तामरस्तोत्र एवं कल्याणमन्दिर स्तोत्र के आधार पर अनेक यन्त्र बने हैं। जिनेन्द्रवर्णी के जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश में 48 यन्त्रों का संग्रह चित्रों सहित किया है, यथा- अंकुरार्पण यन्त्र, अग्निमण्डल यन्त्र, अर्हन्मण्डल यन्त्र, ऋषिमण्डल यन्त्र, कर्मदहनयन्त्र, कुल यन्त्र, गणधरवलय यन्त्र, चिन्तामणि यन्त्र आदि । इस प्रकार मंत्र, तंत्र एवं यन्त्र प्रयोग जैन परम्परा में नैगमिक आगमों और
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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