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________________ जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन 33 सोमदेवसूरि (11वीं शती) ने यशस्तिलकचम्पू में उल्लेख किया है कि लौकिक विधि में जो कुछ कहा गया है वह जैनों के लिए भी प्रमाण है । केवल दो बातों का ध्यान जैनों को रखना है- एक तो ऐसा आचरण न किया जाए, जिससे सम्यक्त्व की हानि हो तथा दूसरा, व्रतों में किसी प्रकार का दोष लगे। इससे विदित होता है कि जैन परम्परा में हिन्दू परम्परा के सामाजिक नियमों को स्वीकृति मिलती रही है, पर जैन श्रावक-श्राविका अपने सम्यक्त्व और व्रतों को सुरक्षित रखते हुए उन सामाजिक नियमों का पालन करते रहे हैं। कुछ जैन विद्वानों ने जैन रीति से विवाह विधि का विकास भी किया है, किन्तु जैन परिवारों ने बृहत् स्तर पर उसे नहीं अपनाया है। इसका कारण विवाह सम्पन्न कराने वाले जैन पण्डितों का अभाव भी है । इसलिए नूतन गृह का प्रवेश हो अथवा विवाह समारोह का कार्यक्रम, सर्वत्र हिन्दू पण्डितों और पुरोहितों को ही जैन परिवारों द्वारा बुलाया जाता है । जैन मन्दिरों में मूर्ति की प्रतिष्ठा अथवा जैन पर्वों के अनुष्ठानों का आयोजन अवश्य जैन विद्वानों अथवा सन्तों के द्वारा सम्पन्न कराया जाता है । I उपसंहार निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि जैन एवं बौद्ध परम्पराओं ने भी चार वर्णों की चर्चा की है, किन्तु उन्होंने ब्राह्मण की अपेक्षा क्षत्रियवर्ण को वरीयता प्रदान की है एवं ब्राह्मण का ऐसा आदर्श स्वरूप प्रतिपादित किया है जो श्रमण के गुणों से सम्पन्न है । ये दोनों दर्शन जन्म के आधार पर जातिवाद के प्रचलन का विरोध करते हैं तथा सभी वर्गों एवं जातियों के लिए धर्म का द्वार खुला रखते हैं । इनके अनुसार मोक्ष या निर्वाण प्राप्ति हेतु किसी भी वर्ण या जाति का व्यक्ति प्रव्रज्या अंगीकार कर सकता है । ये जाति की अपेक्षा कर्म एवं सद्गुणों को महत्त्व प्रदान करते हैं । किसी भी वर्ण या जाति का व्यक्ति यदि प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, व्यभिचार, परिग्रह या मद्यपान करता है तो यह उसके लिए अश्रेयस्कर है । दोनों धर्मों के वाङ्मय में संस्कारों की भी चर्चा हुई है । बौद्ध धर्म में जहां सीमित संस्कार परिगणित हैं, वहाँ जैनधर्म में गृहस्थ एवं साधु के लिए पृथक्-पृथक् 16 संस्कार कहे गए हैं । सामाजिक रीति-रिवाज प्रायः हिन्दू परम्परा से प्रभावित 464
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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