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________________ जैन-बौद्ध वाङ्मय में वर्णाश्रमधर्म और संस्कार 455 की श्रेष्ठता का आधार नहीं माना गया । मनुष्य अपने गुणों एवं व्यवहार से ही श्रेष्ठ या अश्रेष्ठ होता है। व्यक्ति अपने कर्म से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र होता है कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मुणा होई, सुद्धो हवइ कम्मुणा ।।' वहाँ यह भी कहा गया है कि मुण्डन मात्र से ही कोई श्रमण नहीं हो जाता तथा ओंकार का जप करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता, अरण्य में रहने से कोई मुनि नहीं होता तथा कुश के वस्त्रों से कोई तपस्वी नहीं होता। समता के आचरण से मनुष्य श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य का पालन करने से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है तथा तप से तपस्वी होता है। ___ बौद्ध ग्रन्थ सुत्तनिपात में भी जन्म (जाति) की अपेक्षा कर्म को महत्त्व दिया गया है न जच्चा वसलो होति, न जच्चा होति ब्राह्मणो । कम्मुना वसलो होति, कम्मुना होति ब्राह्मणो।' न जन्म से कोई वृषल (शूद्र) होता है, न जन्म से कोई ब्राह्मण होता है। कर्म से ही कोई वृषल होता है एवं कर्म से ही ब्राह्मण होता है। सुत्तनिपात में एक रोचक प्रसङ्ग आता है, जिसमें भारद्वाज एवं वसिष्ठ ब्राह्मण इस बात को लेकर विवाद करते हैं कि ब्राह्मण जन्म से होता है या कर्म से ? भारद्वाज ने कहा कि जब कोई पुरुष माता-पिता से सुजात होता है तथा दोनों ओर की सात पीढ़ी तक विशुद्ध वंश वाला होकर जाति की अपेक्षा अनिन्दित होता है तो वह ब्राह्मण होता है । वासिष्ठ ने इसका प्रतिषेध करते हुए कहा कि जब कोई पुरुष शीलवान् और व्रतसम्पन्न होता है तो वह ब्राह्मण कहलाता है। दोनों परस्पर झगड़ते हुए बुद्ध के चरणों में पहुँचे एवं अपनी समस्या रखी । बुद्ध ने समाधान करते हुए कहा कि विभिन्न प्राणियों में जन्म से जो भेद दिखाई देता है वह जातिगत अर्थात् जन्मगत भेद है, जैसे - तृण, कीट, पतंग, कुन्थु, पिपीलिका, पशु, पक्षी, जलचर, नभचर आदि प्राणियों में परस्पर जन्मगत/जातिगत भेद है। मनुष्य में
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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