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________________ 454 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन भारतीय संस्कृति में वर्ण की अपेक्षा जाति को हेयदृष्टि से देखा गया है । जातिवाद एक विकृत स्वरूप है। उपर्युक्त प्रसङ्ग से जातिवाद की तत्कालीन स्थिति का भान होता है तथा उसके विरोध के स्वर भी मुखरित होते हुए दिखाई पड़ते हैं । इसके साथ ही यज्ञ में होने वाली हिंसा पर भी प्रश्नचिह्न उठने लगे थे और आन्तरिक शुद्धि के बिना बाहरी शुद्धि की व्यर्थता प्रतिपादित होने लगी थी । विभिन्न जातियों में अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह पद्धतियों के कारण नई-नई जातियाँ एवं उपजातियाँ बन रही थीं । ब्राह्मण पुरुष एवं शूद्र स्त्री से उत्पन्न सन्तान 'निषाद', वैश्य पुरुष एवं ब्राह्मण स्त्री से उत्पन्न सन्तान ‘विदेह', शूद्र पुरुष एवं ब्राह्मण स्त्री से उत्पन्न सन्तान 'चाण्डाल' कहलाने लगी। इसी प्रकार क्षत्रिय पुरुष एवं ब्राह्मण स्त्री से उत्पन्न सन्तान को 'सूत' कहा गया। उग्र पुरुष एवं क्षत्रिय स्त्री से उत्पन्न सन्तान को 'सोवाग', शूद्र पुरुष एवं निषाद स्त्री से उत्पन्न सन्तान को 'कुक्कुडक' कहा गया। इस प्रकार अनेक जातियाँ एवं उपजातियाँ बनने लगी। आज देश में जातिवाद हावी है। सरकार ने आरक्षण के माध्यम से इसे अधिक सशक्त बनाया है। वोटों की राजनीति भी जातिवाद की नींव पर चलती है। गुण गौण हो गए हैं, जाति का मन्त्र प्रमुख हो गया है। इसको जप लेने से ही सत्ता की सिद्धि हो जाती है। किन्तु इससे देश का सर्वांगीण कल्याण नहीं हो सकता । यह मनुष्यों के बीच भेदभाव को सुरक्षित रखता है एवं उनमें ईर्ष्या-द्वेष को समाप्त नहीं होने देता । जाति के आधार पर आजीविका उपलब्ध कराना या सत्ता सौंपना ही पर्याप्त नहीं, उनमें गुणों एवं तदनुरूप कर्मों का आधान कराना भी आवश्यक है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर का मन्तव्य है-'जातिप्रथा की नींव पर किसी भी प्रकार का निर्माण सम्भव नहीं है। किसी राष्ट्र का निर्माण नहीं किया जा सकता । जातिप्रथा की नींव पर निर्मित कोई भी चीज कभी सम्पूर्ण नहीं हो सकती,उसमें दरार पड़ जाएगी। भारतीय समाज-व्यवस्था वस्तुतः एक है। हिन्दुओं और जैनों के वैवाहिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम लगभग समान होते हैं । जैन परम्परा पर हिन्दू परम्परा का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । तथापि जैन वाङ्मय में जाति (जन्म) को मनुष्य
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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