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________________ वीतराग और स्थितप्रज्ञ : एक विश्लेषण 3. अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे । - भगवद्गीता, 2.20 4. नो इंदियगेज्झ अमुत्तभावा वि य होइ णिच्चो ।। - उत्तराध्ययनसूत्र, 14.19 5. देहिनोऽस्मिन् यथा देहे कौमारं यौवनं जरा । तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति । - भगवद्गीता 2.13 6. एगया देवलोएसु, णरएसु वि एगया । एगया आसुरे काये, अहाकम्मेहिं गच्छइ ।। - उत्तराध्ययनसूत्र, 3.3 7. उत्तराध्ययनसूत्र, 19.18 8. सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा । कामे पत्येमाणा य, अकामा जंति दुग्गई ।। - उत्तरा 9.53 9. उत्तराध्ययनसूत्र, 29.36 10. उत्तराध्ययनसूत्र, 29.45 11. उत्तराध्ययनसूत्र, 32.8 12. उत्तराध्ययनसूत्र, 32.22, 35, 48, 69, 87 13. भगवद्गीता, 2.64 14. तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वश: । इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ।। - भगवद्गीता, 2.68 15. उत्तराध्ययनसूत्र, 32.19 16. उत्तराध्ययनसूत्र, 32.100 17. उत्तराध्ययनसूत्र, 32.2 18. विहाय कामान्यः सर्वान् पुमांश्चरति निःस्पृहः । निर्ममो निरंहकारः स शान्तिमधिगच्छति ।। - • भगवद्गीता, 2.71 19. उत्तराध्ययनसूत्र, 32.108 109 20. एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति । स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ।। भगवद्गीता, 2.72 431
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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