SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 231 नय एवं निक्षेप कहा गया है। अभिप्राय का अर्थ यहाँ अध्यवसाय है' या निर्णय है, जो ज्ञानात्मक होता है। आचार्य विद्यानन्द ने स्पष्ट रूप से कहा है- नय को ज्ञानात्मक स्वीकार किया गया है, अतः वह प्रमाण का एक देश है। इसमें किसी प्रकार का विरोध नहीं है। 2 2. ज्ञाता का अभिप्राय विशेष जिस प्रकार नय है, उसी प्रकार वक्ता का अभिप्राय विशेष भी नय है। वक्ता के अभिप्राय को नय मानने का आधार सन्मतितर्क का वह वाक्य है जिसमें कहा गया है कि जितने वचन मार्ग होते हैं उतने नयवाद होते हैं। मल्लिषेणसूरि ने सन्मतितर्क के इस वाक्य से यही अर्थ फलित किया है, यथा- वक्तुरभिप्रायाणां च नयत्वात् । - स्याद्वादमंजरी, श्लोक 28 की टीका, पृ. 243 3. नय के ज्ञानात्मक होते हुए भी वाक्यों को नयात्मक वाक्य कहना उपचार से सम्भव है, क्योंकि वाक्यों के माध्यम से अर्थ का बोध होता है । 4. नय के द्वारा अनन्तधर्मात्मक वस्तु के एक अंश का ज्ञान होता है। उदाहरण के लिए वस्तु को द्रव्य की दृष्टि से नित्य जानना एवं पर्याय की दृष्टि से अनित्य जानना नय ज्ञान है। प्रमाण के द्वारा वस्तु को द्रव्यपर्यायात्मक रूप में नित्यानित्यात्मक जाना जाता है। 5. नय का विषय श्रुतज्ञान से ज्ञात वस्तु होती है। नय को आगम - वाक्यों का अभिप्राय समझने में साधन होने से श्रुतज्ञान का अंश स्वीकार किया गया है। 6. नय के द्वारा वस्तु के जिस अंश का ज्ञान होता है, उससे भिन्न अंशों का निषेध या अपलाप नहीं किया जाता है। यही नय का वैशिष्ट्य है। 7. नय ज्ञान भी निर्णयात्मक ज्ञान होता है, जिसे अभिप्राय या अध्यवसाय शब्दों से अभिव्यक्त किया गया है। 8. नय ज्ञान सापेक्ष ज्ञान है, जिसमें कोई न कोई दृष्टिकोण या अपेक्षा निहित रहती है। उदाहरण के लिए किसी वस्तु को नित्य कहने पर द्रव्यदृष्टि की प्रधानता रहती है तथा उसे अनित्य कहने पर पर्यायदृष्टि की प्रधानता होती है। जैन आगमों में तीर्थंकरों की वाणी नय समन्विता है । वे विभिन्न नयों के आधार पर तत्त्वज्ञान का निरूपण करते हैं। अतः नय सिद्धान्त का प्रयोग
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy