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________________ Xvi जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन का मार्ग प्रस्तुत किया। इन दोनों धर्म-दर्शनों में रही समानता एवं असमानता की चर्चा पुस्तक के दो लेखों में हुई है। प्रस्तुत पुस्तक की उपयोगिता का निर्धारण पाठक स्वयं करेंगे। पुस्तक के आलेखों में प्रदत्त संदर्भो के स्वरूप में एकरूपता नहीं रह पाई है, क्योंकि ये आलेख विगत दो दशकों में समय-समय पर भिन्न-भिन्न रीति से लिखे गए थे। उन्हें ही संशोधित एवं संवर्धित कर पुस्तक का आकार प्रदान किया गया है। परम आदरणीय पद्मभूषण श्री देवेन्द्रराज जी मेहता का मुझे शिक्षा- काल से ही पूर्ण आशीर्वाद एवं स्नेह मिलता रहा है। उन्हीं की यह कृपा है कि मैं अपने आलेखों को संकलित कर पुस्तक का स्वरूप प्रदान करने हेतु प्रवृत्त हुआ। उनके प्रति मैं श्रद्धा एवं आदर के साथ कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। आलेखों के पुनरीक्षण एवं संवर्धन में डॉ. श्वेता जैन के अमूल्य सुझाव उपयोगी सिद्ध हुए हैं। प्रूफ संशोधन में श्री देवेन्द्रनाथ जी मोदी का विशेष योगदान रहा है। मैं इन दोनों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। 'जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन' पुस्तक के प्रकाशन का सहर्ष दायित्व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ने स्वीकार कर मुझे कृतार्थ किया है। इण्डियन मैप सर्विस के डॉ. आर.पी.आर्य के प्रति निष्ठा एवं तत्परतापूर्वक कार्य सम्पादन के लिए मैं अनुगृहीत हूँ। यह पुस्तक जैन धर्म-दर्शन के सम्बन्ध में पाठकों की जिज्ञासाओं का शमन करने में यदि किञ्चित् भी सहायक सिद्ध हुई तथा उनकी रुचि को अभिवृद्ध कर सकी, तो मुझे महती प्रसन्नता का अनुभव होगा। - धर्मचन्द जैन 3K 24-25 कुड़ी हाउसिंग बोर्ड, जोधपुर दूरभाष - 0291-2730081, मो. 09413253084 Email- dcjain.jnvu@gmail.com
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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