SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 161 श्रुतज्ञान का स्वरूप 2. सामान्यतः श्रुतज्ञान को आगम प्रमाण के रूप में माना जाता है, जिसमें जिनवाणी, आगमग्रन्थ एवं आप्तोपदेश का समावेश होता है। 3. यह मतिज्ञानपूर्वक होता है । मतिज्ञान इन्द्रियों एवं मन के द्वारा प्रकट होता है तथा श्रुतज्ञान उसके पश्चात् प्रकट होता है। यह कथन ज्ञाता की अपेक्षा से किया गया है, वक्ता की अपेक्षा से नहीं। ज्ञाता मतिज्ञान से जानकर ही हेय, ज्ञेय एवं उपादेय का विचार करता है तथा इस सम्बन्ध में लिया गया निर्णय ही श्रुतज्ञान का स्वरूप ग्रहण करता है। वक्ता यदि केवलज्ञानी है या आप्त पुरुष है तो उसके वचन भी श्रुतज्ञान को उत्पन्न करने में सहायक होने से श्रुतज्ञान कहे जाते हैं। 4. श्रुतज्ञान के प्रकटीकरण के लिए श्रुतज्ञानावरण का क्षयोपशम होना अनिवार्य है स्वाध्याय से तथा ज्ञान का आदर अर्थात् आचरण करने से श्रुतज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होता है। 5. श्रुतज्ञान ही एक ऐसा ज्ञान है जिसकी समानता केवलज्ञान से की जाती है तथा वह सर्व दुःखों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है एवं केवलज्ञान के प्रकटीकरण में सहायक है। 6. यदि श्रुतज्ञान को मात्र शाब्दिक अथवा आगमिक ज्ञान माना जाए, तो वह एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय जीवों में सम्भव नहीं हो सकता तथा कुछ पंचेन्द्रिय जीवों में भी नहीं हो सकता। इसलिए श्रुतज्ञान का स्वरूप आगमिक ज्ञान से भिन्न भी होना चाहिए । जिनभद्रगणी ने समाधान करते हुए कहा है कि एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय जीवों में भी भावश्रुत पाया जाता है, जो द्रव्यश्रुत के बिना भी हो सकता है। 7. श्रुतज्ञान व्यक्ति को सांसारिक आकर्षणों से दूर करता है तथा उसे मुक्ति के मार्ग हेतु प्रेरित करता है। यह आध्यात्मिक विकास हेतु बहुत बड़ी शक्ति है, जब यह रुक जाता है या भ्रान्त होता है तो जीव को सही पथ का ज्ञान नहीं होता है। सन्दर्भ:1. (1) जो हि सुदेणाहिगच्छइ अप्पाणमिणं तु केवलं सुद्धं। तं सुदकेवलिमिसिणो भणंति लोयप्पदीवयरा।।- समयसार, 1.9
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy