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________________ 126 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन वस्तु की अनेकधर्मात्मकता वस्तु अनेकधर्मात्मक है- यह जैन दर्शन की मान्यता के रूप में प्रसिद्ध है, किन्तु अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि इसका अस्तित्व भारतीय दर्शन के विभिन्न सम्प्रदायों में उपलब्ध है। सांख्यदर्शन में प्रकृति को सत्त्वरजस्तमोगुणात्मिका अर्थात् त्रिगुणात्मिका कहा गया है। मीमांसादर्शन में 'तस्माद् वस्तु त्रयात्मकम्" वाक्य के द्वारा वस्तु की त्रयात्मकता अंगीकार की गई है, जो जैनदार्शनिक समन्तभद्र के वाक्य "तस्मात् तत्त्वं त्रयात्मकम्" से पूरा मेल खाती है । न्याय-वैशेषिक दर्शनों में प्रतिपादित 'अपर सामान्य' में प्रथिवीत्व, घटत्व आदि ऐसे उदाहरण हैं जिनमें सामान्य एवं विशेष (भेद) दोनों पाये जाते हैं। बौद्धदर्शन के द्वारा मान्य सत् में क्षणिकत्व, अर्थक्रियाकारित्व, प्रतीत्यसमुत्पन्नत्व आदि अनेक धर्म पाये जाते हैं। वेदान्त दर्शन में ब्रह्म के लक्षण का प्रतिपादन करते हुए उसे सत्, चिद् एवं आनन्दमय प्रतिपादित किया गया है। इस प्रकार ब्रह्म भी अनेक धर्मात्मक है। इस प्रकार वस्तु की अनेकधर्मात्मकता प्रायः सभी दर्शनों को मान्य है। अनेकधर्मात्मकता ही अनेकान्तात्मकता है। ‘अनेकान्त' में 'अन्त' शब्द धर्म का वाचक है। जो सिद्धान्त वस्तु में अनेक धर्मों को स्वीकार करता है वह अनेकान्तवाद है। इस दृष्टि से प्रायः सभी दर्शन अनेकान्तवादी हैं। अनेकान्तवाद और अनैकान्तिक हेत्वाभास में भेद अनेकान्तवाद में रहे ‘अनेकान्त' का साम्य कुछ विद्वान् ‘अनैकान्तिक हेत्वाभास' शब्द से करने लगते हैं, किन्तु यह उनकी भूल है । अनैकान्तिक हेत्वाभास दो स्थितियों में होते हैं- 1. जब हेतु पक्ष, सपक्ष एवं विपक्ष तीनों में रहे तो उसे साधारण अनैकान्तिक हेत्वाभास कहा जाता है, जैसे शब्द नित्य है प्रमेय होने से, व्योम की तरह। यहाँ प्रमेयत्व हेतु सपक्ष नित्य एवं विपक्ष अनित्य दोनों में रहता है अतः साधारण अनैकान्तिक हेत्वाभास है। 2. जो सपक्ष एवं विपक्ष दोनों से व्यावृत्त होकर पक्ष में ही रहता है वह असाधारण अनैकान्तिक हेत्वाभास कहलाता है। उदाहरणार्थ-'पृथ्वी नित्य है, गन्धवती होने से। गन्धवत्व हेतु मात्र पृथ्वी में रहता है उसका कोई सपक्ष एवं विपक्ष नहीं है। यहां पर अवधारणीय है कि अनेकान्तवाद
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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