SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमोऽध्यायः गंध और स्पर्श वाले द्रव्य दिखते हैं। फिर अवधि ज्ञान से मनः - पर्याय ज्ञान का विषय-निबन्ध ( सब रूपो द्रव्यों का ) अनंत भाग में कहा है। __अवधि ज्ञान से मनःपर्यव ज्ञान ज्यादा शुद्ध है । जितने रूगी द्रव्यों को अवधि ज्ञानी जानता है उनके अनंत में भाग में मन पणे परिणमें हुए (मनोवगणा) द्रव्यों को मनःपर्यव ज्ञानी शुद्ध रीति से जानता है । अवधिज्ञान का विषय अंगुल के असंख्यात में भाग से लगाकर सब लोक क्षेत्र तक होता है और मनःपर्याय ज्ञान वाले का विषय अढाई द्वीप तक ही होता है। भवधिज्ञान संयत असंयत चारों गति के जीवों को होता है और मनःपर्यव ज्ञान संयत (चारित्र वाले ) मनुष्य को ही होता है । सब रूपी द्रव्य के अनंत में भाग के द्रव्य को यानी मनोद्रव्य और उसके पर्याय को जानने का है। (२७) मतिश्र तयोनिवन्धः सर्वद्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु । - मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का विषय कितनेक पर्यायों समेत सब द्रव्यों को जानने का है । मतलब यह है कि- वे सब द्रव्यों को जानते हैं, लेकिन उनके सब पर्याय को नहीं जान सकते हैं। __ (२८) रूपिष्ववधेः। रूपी द्रव्यों के विषय में ही अवधिज्ञान का विषय-निबन्ध है यानी विशुद्ध ऐसा भी अवधिज्ञान से रूपी द्रव्यों को ही और उनके कितनेक पर्यायों को हो जाने। (२६) तदनन्तभागे मनःपर्यायस्य । ... उन रूपी द्रव्यों के अनंत में भाग से मन पणे परिणमें हुए मन द्रव्यों को जानने का मनःपर्यायज्ञान का विषय है।
SR No.022521
Book TitleTattvarthadhigam Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1971
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy