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________________ ९८ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (२५) वाचनाप्रच्छनाऽनुप्रेक्षाऽऽम्नायधर्मोपदेशाः। (१) वाचना (पाठ लेना) (२) पृच्छना (पूछना), (३) अनुप्रेक्षा (मूल तथा अर्थ का मन से अभ्यास करना), (४)आम्नाय (परावर्तना पढाया हुवा संभालना) और ५ धर्मोपदेश करना ये पांच प्रकार का स्वाध्याय जानना। (२६) बाह्याभ्यन्तरोपध्योः। व्युत्सर्ग दो प्रकार का है- बाह्य और अभ्यन्तर, बाह्य व्युत्सर्ग बारा प्रकार की उपधि का जानना, और अभ्यन्तर व्युत्सर्ग शरीर और कषाय का जानना। (२७) उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम् । उत्तम संहनन (वर्षभनाराच ऋषभनाराच; नाराच और अर्धनाराच ये चार संघयण) वाले, जीवों को एकाप्रपणे चिन्ता का रोध वह ध्यान जानना। श्रा मुहर्त्तात् । वह ध्यान एक मुहूर्त तक रहता है। [२६] आर्तरौद्रधर्मशुक्लानि । आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान इस तरह ध्यान चार प्रकार के हैं। [३०] परे मोक्षहेतू । पिछले दो ध्यान (धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान) ये मोक्ष के हेतु हैं। [३१] आर्तममनोज्ञानां सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसम न्वाहारः। [२८]
SR No.022521
Book TitleTattvarthadhigam Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1971
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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