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________________ भाषा छंद सहित। णि धर्मः ॥ ६ ॥ अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्रवसंवरनिर्जरालोकबोधिदुर्लभधर्मस्वाख्यातत्त्वा ऐसे निर्जरा और संवर सु जान योग, योगको निरोध सोई गुप्ति भी प्रमाणिये । सुमतिके भेद आगे कहत हों सो तौ सुघर, आगमके अनुसार सब रीति मानिये ॥१॥ चौपाई। पृथिवी निरखि गमन जो करै । इर्यासमिति चित सो धरै ॥ हित मितिकारी बचन रसाल । बोलै भाषासमिति विशाल ॥२॥ निरख परख आहार जु लेय । समिति एषणा हृदयं धरेय ॥ धरै उठावें भूमि निहार ।निक्षेपन आदानि विचार ॥३॥ ममता काय तजे निरधार । ऐसें समिति पांच विध सार ॥ कर्कश त्याग बचन बध बन्ध । उत्तमक्षमा सु है गुण खंध ॥४॥ कोमलता मार्दवको नाम । जान सरलता आर्जव धाम ॥ सत्य बचन जगमें प्रख्यात । शौच त्याग परवस्तु कहात ॥५॥ संयम रक्षा है षटकाय । इंद्रीपांच निरोध कराय ॥ अनशनादि तप वारह सार । चार दान धनत्याग निहार ॥६॥
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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