SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थसूत्र देशाः ॥२४॥ सद्धेद्यशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् ॥२५॥ अतोऽन्यत्पापम् ॥ २६॥ ___ इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रेऽष्टमोध्यायः ॥ ८॥ ____ आस्रवनिरोधः संवरः ॥ १ ॥ स गुप्तिसमितिध उनुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रैः ॥ २ ॥ तपसा निर्जरा च॥३॥ सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः ॥ ४ ॥ ई-भाप्रेषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः॥५॥ उत्तमक्षमामा वार्जवशोचसत्यसंयमतपस्त्यागाऽकिञ्चन्यब्रह्मचर्या-- सब आतमके परदेश विषै, है नंत अनंत प्रदेश सुकर्मा । शुभ आयु नाम सु गोत्र कहो, अरु पुण्य सु साता वेद सुकर्मा। इतने छोड़ सु पाप कहे, इह सूत्रकी रीति लखौ भ्रम हर्ता । अध्याय सु अष्टम पूर्ण भयो, तत्त्वारथ सूत्र सु मोक्षको कर्ता ॥२५॥ ___ छंद मशोक पुष्पमंजरी। आस्रवको निषेध सोई संबर बतायो गुरु, गुपति समिति धर्म अनुप्रेक्षा जानिये । वाइसपरीषहसहित शुभचारित्र जान, द्वादशप्रकार जैन तप यों बखानिये ॥
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy