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________________ 90 है। संसार से मुक्ति चाहने वाले साधक के लिए कर्मबंधन के कारण आश्रव को जानना और फिर इसे छोड़ना आवश्यक है। कर्माकर्षणहेतुरात्मपरिणामः आश्रवः-जिस परिणाम से आत्मा में कर्मों का आश्रवण-प्रवेश होता है, उसे आश्रव कहा जाता है। जिस प्रकार छिद्रयुक्त नौका के समुद्र में स्थित होने पर उन छिद्रों से नौका में जल भरता रहता है और वह नौका समुद्र में डूब जाती है उसी प्रकार मिथ्यात्व, अव्रत आदि आश्रवछिद्रों द्वारा आत्मारूपी नाव में कर्मरूपी पानी का प्रवेश होता रहता है और वह कर्मयुक्त आत्मा संसार में परिभ्रमण करती रहती है। आश्रव के प्रकार आश्रव के पांच प्रकार हैं- मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और योग। ये पांचों कर्म आने के द्वार हैं। जिस प्रकार दरवाजा खुला होने पर कोई भी अन्दर प्रवेश कर सकता है, अच्छे व्यक्ति भी प्रवेश कर सकते हैं, बुरे व्यक्ति भी प्रवेश कर सकते हैं। उसी प्रकार आश्रव द्वार से शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के कर्म प्रवेश कर सकते हैं। ये आश्रव द्वार पांच हैं। ये पांचों कर्म बंधन के कारण होने से साधना में बाधक तत्त्व हैं। . 1. मिथ्यात्व आश्रव-विपरीत तत्त्व श्रद्धा का नाम मिथ्यात्व है। यह जीव की दृष्टि को विकृत कर देता है, जिसके कारण व्यक्ति सही को गलत और गलत को सही समझता है, जैसे-धर्म को अधर्म समझता है और अधर्म को धर्म समझता है। 2. अव्रत आश्रव-अत्याग भाव का नाम अव्रत है। इसके कारण जीव हिंसा आदि पापकारी प्रवृत्तियों का त्याग नहीं कर पाता। 3. प्रमाद आश्रव-अध्यात्म के प्रति होने वाले आन्तरिक अनुत्साह का नाम प्रमाद है।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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