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________________ 6. क्रोध-यह उत्तेजना से बंधने वाला पापकर्म है। 7. मान-यह अभिमान से बंधने वाला पापकर्म है। 8. माया- यह धोखाधड़ी, वंचना आदि करने से बंधने वाला पापकर्म है। 9. लोभ-यह लालसा से बंधने वाला पापकर्म है। 10. राग-यह रागात्मक प्रवृत्ति से बंधने वाला पापकर्म है। 11. द्वेष-यह द्वेषात्मक प्रवृत्ति से बंधने वाला पापकर्म है। 12. कलह-यह झगड़ालू वृत्ति से बंधने वाला पापकर्म है। 13. अभ्याख्यान- यह मिथ्या दोषारोपण करने वाली प्रवृत्ति से बंधने वाला पापकर्म है। 14. पैशुन्य- यह चुगली करने की प्रवृत्ति से बंधने वाला पापकर्म है। 15. परपरिवाद-यह पर-निन्दामूलक प्रवृत्ति से बंधने वाला पापकर्म है। 16. रति-अरति- यह असंयम में रुचि और संयम में अरुचि के निमित्त से बंधने वाला पापकर्म है। 17. माया-मृषा- यह छलनापूर्वक असत्य-संभाषण की प्रवृत्ति से बंधने वाला पापकर्म है। 18. मिथ्यादर्शनशल्य- यह विपरीत श्रद्धा से बंधने वाला __पापकर्म है। 6. आश्रव तत्त्व आत्मा और कर्म का संबंध अनादि-कालीन है। संबंध का मूल कारण आश्रव है। आश्रव के द्वारा कर्मों का आकर्षण होता है और . कर्मों के कारण आत्मा अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण कर रही.
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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