SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 87 आचार्य उमास्वाति ने पुण्य और पाप को बंध का ही भेद स्वीकार कर तत्त्व सात माने हैं। इन्हें अलग मानने पर तत्त्वों की संख्या नौ हो जाती है। 4. पुण्य तत्त्व कर्म बंधन दो प्रकार का होता है-शुभ बंधन और अशुभ बंधन। जब शुभ कर्मों का उदय होता है तो उन्हें पुण्य कहा जाता है और जब अशुभ कर्मों का उदय होता है तो उन्हें पाप कहा जाता है। कारण में कार्य का उपचार करने पर जिन-जिन कारणों से शुभ कर्म का बंधन होता है, उन कारणों को भी पुण्य कह दिया जाता . पुण्य के प्रकार पुण्य का बंधन नौ कारणों से होता है अतः पुण्य के नौ प्रकार ___1. अन्न पुण्य-संयमी पुरुष को दिये जाने वाले अन्न दान के निमित्त से होने वाला शुभकर्म अन्न पुण्य है। 2. पान पुण्य-संयमी पुरुष को दिये जाने वाले पानक-जल आदि के निमित्त से होने वाला शुभकर्म पान पुण्य है। 3. लयन पुण्य-संयमी पुरुष को दिये जाने वाले मकान के निमित्त से होने वाला शुभकर्म लंयन पुण्य है। . 4. शयन पुण्य-संयमी पुरुष को दिये जाने वाले पाट-बाजोट आदि के निमित्त से होने वाला शुभकर्म शयन पुण्य है। 5. वस्त्र पुण्य-संयमी पुरुष को दिये जाने वाले वस्त्र के निमित्त से होने वाला शुभकर्म वस्त्र पुण्य है। 6. मन पुण्य-मन की शुभ प्रवृत्ति से होने वाला शुभकर्म .... .. मन पुण्य है।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy