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________________ 64 है। जीव में स्नेह है-आश्रव और पुद्गल में स्नेह है-आकर्षण होने की योग्यता। इसकी जानकारी सूत्र में आये हुए सिणेहपडिबद्धा शब्द से मिलती है। इस प्रकार जैन दर्शन में आत्मा और शरीर के संबंध में किसी प्रकार की समस्या नहीं आती, जैसी कि अन्य दर्शनों में आती है। जैन दर्शन के अनुसार आत्मा कथंचित् मूर्त है और मूर्त का मूर्त के साथ संबंध हो सकता है। शरीर और चेतना को सर्वथा स्वतन्त्र स्वीकार कर उसकी व्याख्या नहीं कर सकते, किन्तु सापेक्ष स्वतन्त्र स्वीकार कर हम उनके सम्बन्ध और पारस्परिक प्रभाव की व्याख्या कर सकते हैं। 6. पुनर्जन्मवाद जैन दर्शन आत्मवादी दर्शन है। वह आत्मा के त्रैकालिक अस्तित्व को स्वीकार करता है। आत्मा अतीत में थी, वर्तमान में है और भविष्य में होगी। जिसका अतीत और भविष्य नहीं होता, उसका वर्तमान भी नहीं होता। वर्तमान में हमें आत्मा का अनुभव होता है अतः आत्मा का अतीत भी था और भविष्य भी होगा। वर्तमान जीवन हमारे प्रत्यक्ष है किन्तु इस जन्म से पूर्व अतीत में आत्मा क्या थी और मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाएगी, हमें ज्ञात नहीं है। आत्मा की त्रैकालिक सत्ता की स्वीकृति पुनर्जन्म के सिद्धान्त की स्वीकृति है। आत्मा है, आत्मा शाश्वत है और कर्म है-ये तीनों पुनर्जन्म को प्रमाणित करते हैं। कर्मयुक्त आत्मा के आधार पर ही पुनर्जन्मवाद की स्थापना संभव है। जब तक आत्मा कर्मों से मुक्त होकर अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित नहीं होती तब तक पुनर्जन्म की परम्परा चलती रहती दार्शनिक जगत् में आत्मा और पुनर्जन्म के संबंध में कुछ मान्यताएँ प्रचलित हैं
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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