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________________ 36 जैसे थैली में हवा के आधार पर पानी ठहरा हुआ है, वैसे ही वायु के आधार पर उदधि और उदधि के आधार पर पृथ्वी प्रतिष्ठित है। . इस प्रकार जैन दर्शन के अनुसार लोक षड् द्रव्यात्मक है। लोक-अलोक का विभाजक तत्त्व धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय है। यह लोक चौदह रज्जु परिमाण तथा त्रिशरावसंपुटाकार वाला है। प्रश्नावली प्रश्न-1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखें 1. जैन दर्शन के अनुसार सत् के स्वरूप का विवेचन करें। 2. द्रव्य-गुण-पर्याय के स्वरूप को बताते हुए उनके भेदाभेद का विवेचन करें। . 3. जैन दर्शन के अनुसार षड् द्रव्य को समझाते हुए उसके महत्त्व पर प्रकाश डालें। 4. अस्तिकाय को परिभाषित करते हुए पंचास्तिकाय का विवेचन करें। 5. जैन दर्शन के अनुसार परमाणु की अवधारणा पर प्रकाश डालें। . 6. जैन दर्शन में प्रतिपादित लोक के स्वरूप को विस्तार से समझाएँ। प्रश्न-2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 100 शब्दों में दें 1. धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय को स्पष्ट करें। 2. पुद्गलास्तिकाय का विवेचन करें। 3. पर्याय किसे कहते हैं, उसके प्रकारों का विवेचन करें। 4. द्रव्य-गुण-पर्याय के भेदाभेद को समझाएँ। 5. लोक के आकार पर प्रकाश डालें। 6. लोक की स्थिति को समझाएँ।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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