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________________ 19 3. आकाशास्तिकाय . यह तीसरा द्रव्य है। इसे परिभाषित करते हुए लिखा गया'अवगाहलक्षणः आकाशः' समस्त द्रव्यों को अवकाश (आश्रय) देने वाला तत्त्व आकाश है। लोक-व्यवहार में प्रायः नीले रंग का जो आकाश दिखाई देता है, उसे आकाश कहा जाता है। वास्तव में वह आकाश नहीं है, क्योंकि आकाश केवल ऊपर ही नहीं है, अपितु सर्वत्र है। यदि आकाश सर्वत्र न हो तो व्यक्तियों और वस्तुओं को आश्रय कौन देगा? ऊपर जो नीला आकाश दिखाई देता है, वह पौद्गलिक है। आकाशास्तिकाय कोई ठोस द्रव्य नहीं, अपितु खाली स्थान है। उसके दो विभाग किये गए हैं-लोकाकाश और अलोकाकाश। जैसे जल का आश्रय-स्थान जलाशय कहलाता है, वैसे ही समस्त द्रव्यों का आश्रय-स्थान लोकाकाश कहलाता है। जहाँ समस्त द्रव्य नहीं, केवल आकाश है, वह स्थान अलोकाकाश कहलाता है। धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय की भाँति आकाश भी एक अखण्ड द्रव्य है। लोकाकाश और अलोकाकाश के बीच कोई सीमारेखा या भेदरेखा नहीं है। यह विभाजन धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य के आधार पर किया गया है। आकाश के आधार पर नहीं। आकाश के जिस खण्ड तक धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि द्रव्य हैं, उतना खण्ड लोकाकाश है और जिस खण्ड में उनका अभाव है, वह अलोकाकाश भगवतीसूत्र में गणधर गौतम ने जिज्ञासा की-भगवन्! आकाश तत्त्व से जीवों और अजीवों को क्या लाभ होता है? भगवान महावीर ने कहा-गौतम! यदि आकाश नहीं होता तो ये जीव कहाँ होते? ये धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय कहाँ व्याप्त होते? काल कहाँ बरतता? पुद्गल का रंगमंच कहाँ पर बनता? यह विश्व निराधार हो जाता। - - -
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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