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________________ 228 वैयक्तिक संकल्प का विकास कर विश्व को हिंसा से मुक्ति दिलाने का अनूठा प्रयोग है। इस हेतु समय-समय पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है, जिसकी अनुगूंज यू.एन.ओ. तक भी हुई 7. पर्यावरण चेतना और अणुव्रत __असीम उपभोक्तावाद तथा सुख-सुविधावादी दृष्टिकोण ने पर्यावरण के असंतुलन को बढ़ाया है। पदार्थ सीमित हैं, उपभोक्ता अधिक हैं और इच्छाएँ असीम हैं। परिणामस्वरूप प्रकृति का अत्यधिक दोहन हो रहा है और पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। जन-जन में पर्यावरण चेतना को जगाने के लिए 'अणुव्रत आन्दोलन' ने अणुव्रतों का निर्माण किया है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति संकल्पबद्ध होता है कि मैं पर्यावरण की समस्या के प्रति जागरूक रहूँगा। हरे-भरे वृक्ष को नहीं काढूँगा। पानी का अपव्यय नहीं करूँगा। 8. समाज और अणुव्रत समाज में समय की आवश्यकतानुसार नियम एवं रीति-रिवाज बनते हैं। कालान्तर में उनकी उपयोगिता कम हो जाती है। वे रूढ़ि बन जाते हैं। ऐसी रूढ़ियाँ समाज के विकास में बाधक होती हैं। समाज में अस्पृश्यता, बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह, दहेज-प्रथा, मृत्यु-भोज, शोक-प्रथा, पर्दा-प्रथा, व्यसन, निरक्षरता जैसे अनेक अभिशाप हैं, जो समाज को रुग्ण बना रहे हैं। अणुव्रत इसके निवारणार्थ समय-समय पर अस्पृश्यता-निवारण, रूढ़ि-मुक्ति, व्यसन-मुक्ति, दहेज-विरोधी अभियान, साक्षरता एवं महिला-जागृति जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों का संचालन करता है। इसके अतिरिक्त 'अणुव्रत परिवार' और 'अणुव्रत ग्राम' की योजना को भी साकार रूप दे रहा है। इस प्रकार अणुव्रत का कार्यक्षेत्र व्यापक है।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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