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________________ 188 चाह नहीं अपितु देह-पोषण का विसर्जन किया जाता है। आत्महत्या जीवन से ऊबकर की जाती है, उसके मूल में कायरता है। जबकि संथारा द्वार पर खड़ी मृत्यु का स्वागत है। भय या कायरता नहीं अपितु साहसपूर्ण सामना है। इस प्रकार संथारा और आत्महत्या का उद्देश्य अलग-अलग होने से संथास को आत्महत्या नहीं कहा जा सकता। संथारा समाधिपूर्वक मृत्यु का वरण करने की कला है। यह मृत्यु से घबराना नहीं अपितु हंसते हुए मृत्यु का स्वागत करना है। . प्रश्नावली प्रश्न-1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखें 1. श्रमण किसे कहते हैं, उसके आचार का विवेचन करें। 2. श्रावकाचार पर एक निबन्ध लिखें। 3. श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का विवेचन करें। 4. जैन जीवनशैली पर प्रकाश डालें। 5. जैन दर्शन के अनुसार इच्छापरिमाणव्रत को स्पष्ट करते हुए उसके औचित्य पर प्रकाश डालें। 6. संलेखना किसे कहते हैं? संलेखना की विधि का विवेचन करें। 7. संथारा किसे कहते हैं? सिद्ध करें कि संथारा आत्महत्या नहीं है। प्रश्न-2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 100 शब्दों में दें 1. पांच समिति को समझाएँ। 2. चार शिक्षाव्रत पर प्रकाश डालें। 3. परिग्रह के कारणों का विवेचन करें। .
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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