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________________ 186 2. परलोक-आशंसा प्रयोग-परलोक सम्बन्धी स्वर्ग-सुख आदि प्राप्ति की इच्छा करना, परलोक-आशंसा अतिचार प्रयोग है। 3. जीवन-आशंसा प्रयोग- अधिक समय तक जीने की आकांक्षा करना, जीवन-आशंसा प्रयोग अतिचार है। 4. मरण-आशंसा प्रयोग-संलेखना-संथारा की कठिनाई से घबराकर शीघ्र मरने की इच्छा करना, मरण आशंसा प्रयोग अतिचार 5. कामभोग-आशंसा प्रयोग-कामभोगों के प्राप्ति की आकांक्षा करना, कामभोग-आशंसा प्रयोग अतिचार है। उक्त प्रकार की इच्छाएँ करने से साधक का संलेखना व्रत दूषित होता है। संलेखना-संथारा की साधना करने वाले साधक को इहलोक या परलोक की आकांक्षा, जीने या मरने की आकांक्षा तथा कामभोगों की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए। संलेखना : संथारा का महत्त्व श्रावक के तीन मनोरथों में 'संथारा' तीसरा मनोरथ है। श्रावक जीवन भर यह संकल्प करता है कि मैं अन्तिम समय में अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना-संथारा व्रत स्वीकार करूंगा। अन्तिम समय में संलेखना संथारा पूर्वक समाधिमरण को प्राप्त होने वाला श्रावक या श्रमण संसार के सभी दु:खों से मुक्त हो जाता है। उसकी निश्चित रूप से सुगति होती है। वह अधिक जन्मों तक संसार में परिभ्रमण नहीं करता। संथारे के महत्त्व को बताते हुए लिखा गया-जीवन भर लम्बी-लम्बी तपस्या करने से या अहिंसा आदि व्रतों को धारण करने से जो फल प्राप्त नहीं होता वह फल अन्तिम समय में समाधिपूर्वक शरीर त्यागने से प्राप्त होता है। इसलिए सभी को यह भावना मन में रखनी चाहिए कि जीवन के अन्तिम समय में मुझे संथारा जरूर आये, भले ही दो मिनिट के लिए ही क्यों न आये।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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