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________________ 183 प्रश्न हो सकता है कि संलेखना-संथारा अन्तिम समय में ही क्यों किया जाता है? जैन दर्शन में यह कहा गया-'जल्लेसे मरइ, तल्लेसे उवज्जइ' अर्थात् जीव जिस लेश्या (भावधारा) में मरता है, वह अपने अगले जन्म में उसी लेश्या का धारक होकर देव, मनुष्य आदि गतियों में उत्पन्न होता है। इस प्रकार समाधिमरण को प्राप्त होने वाले व्यक्ति का पुनर्जन्म निश्चित रूप से अच्छा होता है। हमारा अगला जन्म कैसा होगा, इसे जानने का माध्यम है-मृत्यु के समय हमारी भावधारा कैसी है? भावधारा अच्छी होने पर सुगति, भावधारा खराब होने पर दुर्गति होती है। अत: व्यक्ति को अंतिम समय में अपनी भावधारा अच्छी रखनी चाहिए। अन्तिम समय में धन, परिवार आदि की मोह माया को छोड़ देना चाहिए। किसी के प्रति भी बुरे भाव, राग-द्वेष के भाव नहीं रखने चाहिए। संथारा भावधारा को अच्छा बनाये रखने का एक उपक्रम है। संलेखना की विधि . श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं में संलेखना के विषय में यत्किंचित् मतभेद है, पर दोनों ही परम्पराओं का तात्पर्य एक सदृश है। संलेखना में जो तपविधि का प्रतिपादन किया गया है, उससे यह नहीं समझना चाहिए कि तप ही संलेखना है। तप के साथ कषायों की मन्दता तथा अप्रशस्त भावों का परित्याग आवश्यक है। तप का जो क्रम प्रतिपादित किया गया है, उसमें भी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की दृष्टि से परिवर्तन किया जा सकता है। संलेखना का उत्कृष्ट काल. बारह वर्ष का माना गया है। मध्यम काल एक वर्ष का तथा जघन्य काल छः महीने का है। उत्कृष्ट संलेखना की विधि इस प्रकार है ___ संलेखना करने वाला प्रथम चार वर्षों में चतुर्थ (उपवास), षष्ठ (दो दिन का उपवास), अष्टम (तीन दिन का उपवास) आदि तप की
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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