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________________ 101 अभाव में वह स्वस्थ नहीं बन सकता, उसी प्रकार मोक्ष प्राप्ति के लिए भी तीनों का योग आवश्यक है। यदि व्यक्ति में धर्म के प्रति श्रद्धा तो बहुत है पर धर्म का सही ज्ञान और उसका आचरण नहीं है तो मोक्ष नहीं मिलता। धर्म पर श्रद्धा तथा उसका सही ज्ञान होने पर भी यदि उसका आचरण नहीं है तो भी मोक्ष नहीं मिलता। श्रद्धा और ज्ञान के साथ-साथ जब उसका आचरण भी होता है तो मोक्ष-मार्ग बनता है। जैन दर्शन में केवल श्रद्धा, केवल ज्ञान या केवल चारित्र को महत्त्व नहीं दिया गया अपितु मोक्ष-प्राप्ति के लिए तीनों की समन्विति को स्वीकार किया गया है। 1. सम्यक् दर्शन परम पुरुषार्थ मोक्ष को पाने के तीन साधन बतलाए गए हैं। उनमें पहला है-सम्यग् दर्शन। जैन दर्शन में सम्यग दर्शन का बड़ा महत्त्व है। उत्तराध्ययन में कहा है-दर्शन विहीन व्यक्ति के ज्ञान नहीं होता। ज्ञान के बिना चारित्र नहीं होता और चारित्र के बिना मोक्ष नहीं होता। दर्शन सम्पन्न व्यक्ति भव परम्परा का अन्त पा लेता है। सत्य के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण, तत्त्व जिज्ञासा एवं सत्य प्राप्ति के योग्य अन्त:करण की पवित्रता का होना ही सम्यग् दर्शन है। तत्त्वार्थसूत्र में कहा गया है-'तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग् दर्शनम्' तत्त्व के प्रति सही श्रद्धा का होना सम्यक् दर्शन है। इस सम्यक् दर्शन की प्राप्ति दो प्रकार से होती है-निसर्गज और निमित्तज। जो किसी के उपदेश से, भगवान की प्रतिमा आदि के दर्शन से या किसी घटना विशेष के निमित्त से होता है, उसे निमित्तज सम्यक् दर्शन कहते हैं। जो उपदेश आदि के निमित्त के बिना स्वतः ही आन्तरिक शुद्धि से प्राप्त होता है, उसे निसर्गज सम्यक् दर्शन कहते हैं। निश्चय दृष्टि से कौन सम्यक् दृष्टि है या नहीं, पहचान कर पाना कठिन है। किन्तु व्यवहार में इसकी पहचान के लिए पांच लक्षण बताये गए हैं 1. शम-जिसका कषाय उपशान्त होता है। . .
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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