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________________ उपा. यशोविजय रचित शब्द नयस्तु प्रतिजानीते - अयुक्तमुक्तमेतदृजुसूत्रेण, भजनाया विकल्परूपत्वेनैकतरमादाय विनिगन्तुमशक्यत्वात् धर्मास्तिकाय प्रदेशस्यापि अधर्मास्तिकायत्वेन भजनीयत्वप्रसङ्गात् । तदेवमभिधेयं धर्मे धर्म इति वा प्रदेशो धर्मः, अधर्मेऽधर्म इति वा प्रदेशोऽधर्मः, आकाश आकाश इति वा प्रदेश आकाशः, जीवे जीव इति वा प्रदेशो नोजीवः, स्कन्धे स्कन्ध इति वा प्रदेशो नोस्कन्ध इति । अत्र धर्माधर्मास्तिकायादेरक्यात्तत्प्रदेशस्य धर्मास्तिकायादिरूपताऽनतिप्रसक्तेति तथोक्तिः । जीवस्कन्धयोस्तु प्रतिस्वमनन्तत्वात् कथमधिकृत प्रदेशस्य सकलसन्तानात्मकत्वसम्भव इति विवक्षितप्रदेशे सकलसन्तानैकदेशविवक्षितसन्तानात्मकत्वप्रतिपादनाय नोजीवत्व - नोस्कन्धत्वोक्तिरिति ध्येयम् ४६ "प्रकार" शब्द का भेद अर्थ तृतीयपक्ष में हे। ने से 'पञ्चप्रकारत्व' शब्द का पंचभेदत्य अर्थ होता है किन्तु यह पक्ष भी युक्त नहीं है क्योंकि तत्तत् प्रदेशों से अतिरिक्त तत्तत् प्रदेशगत भेद का निर्वाचन सम्भव होने से 'पंचविधः प्रदेश:' इसका अर्थ 'पंचभेदवान् प्रदेशः ' करना युक्त नहीं है । इसलिए प्रदेश को ( भाज्य ) भजना का विषय मानना ही उचित है।गा और यही "ऋजुसूत्र” को अभिमत है । भजना को दिखाने के लिए " स्यात् " शब्द जनमत में सुप्रसिद्ध है । इसलिए स्यात् शब्द से प्रदेश की भजना इस प्रकार होगी जैसे- " प्रदेशः स्यात् धर्मास्तिकायस्थ, प्रदेशः स्यात् अधर्मास्तिकायस्य " इत्यादि वाक्यप्रयोग संस्कृत में होगा । ' स्यात् ' यह अव्यय सापेक्ष वैकल्पिक अर्थ को धोतित करता है, इसलिए प्रदेश में धर्मास्तिकाय सम्बन्धित्व, अधर्मास्तिकाय सम्बन्धित्व वगैरह का ज्ञान होने पर भी वह ज्ञान अवधारणरूप नहीं होगा । इसी तरह से प्रदेश में आकाशास्तिकाय सम्बन्धित्व, जीवास्तिकायसम्बन्धित्व, स्कन्धसम्बन्धित्व का भी ज्ञान अवधारणात्मक ही होगा । यह 'ऋजुसूत्र' का अभीष्ट है । [ प्रदेश दृष्टान्त से शब्दtय का निरूपण ] " शब्दनय" इत्यादि - 'ऋजुसूत्र ' ने जो प्रदेश में भाज्यत्व बताया है, वह " शब्दनय" को मान्य नहीं है । अभिप्राय यह है कि ऋजुसूत्र मत का यह कहना कि प्रदेश भाज्य है' - युक्त नहीं है चूंकि ' स्यात्' से प्रतिपादित भजना विकल्परूप होने से किसी एक प्रदेश को लेकर यह 'धर्मास्तिकाय का ही प्रदेश है' ऐसा नियमन नहीं कर सकती है । तब तो जिस धर्मास्तिकाय प्रदेश को लेकर यह 'धर्मास्तिकाय का प्रदेश है' इस तरह की भजना की प्रवृत्ति होगी उसी प्रदेश को लेकर ' यह अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है ' इस तरह की भजना का प्रसंग भी आ जायगा । चूंकि भजना विकल्परूप होने से वस्तु के अधीन नहीं है किन्तु वह विकल्प इच्छा के अधीन है । अतः जो धर्मास्तिकाय का प्रदेश अधर्मास्तिकाय का प्रदेश नहीं है उस में भी 'यह अधर्मास्तिकाय का प्रदेश होगा' ऐसा विकल्प हो सकता है। इस का कारण यह है कि विकल्प में वस्तु का होना अनिवार्य नहीं है और विकल्परूप ही भजना है । एवं अधर्मास्तिकाय के प्रदेश में ' यह
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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