SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नयरहस्य यदा तूभयोरप्युद्भूतत्वं विवक्ष्यते, तदा भवतु 'घटस्य रूपादय' इत्येकदैवैकवचनबहुवचनप्रयोगः । वचन और बहुवचन दोनों का प्रयोग हो सकता है' ऐसा कहना भी ठीक नहीं है । ण, सभी काल में भेदाभेद के होने से एकत्व, बहत्व इन दोनों का दोनों काल में होना अनिवार्य है। इसलिए एकत्वप्रयुक्त एकवचन का प्रयोग बहुत्व से प्रतिबद्ध होगा और बहुत्वप्रयुक्त बहुवचन का प्रयोग एकवचन से प्रतिबद्ध होगा। तब किसी काल में "गुरुः" ऐसा एकवचन का प्रयोग होता है और किसी काल में "गुरवः” ऐसा बहुवचन का प्रयोग होता है वह न होना चाहिए"- इस शंका का समाधान "उच्यते” इत्यादि सन्दर्भ से दिया जाता है कि जब एक ही वस्तु में द्रव्य के उदभूतत्व की विवक्षा वक्ता को रहेगी और पर्यायों में अनुदभूतत्व की विवक्षा रहेगी, तब "गुरुः" एसा एकवचन का प्रयोग होगा तथा वक्ता को जब पर्यायों में उदभूतत्व की विवक्षा रहेगी और द्रव्य में अनुदभूतत्व की विवक्षा रहेगी तब वक्ता “गुरवः” ऐसा बहुवचन का प्रयोग करेगा। इस तरह विवक्षाभेद से दोनों प्रयोग सुधटित बन जाते हैं। विवक्षा वक्ता की इच्छा को कहते हैं। वक्ता की इच्छा का तात्पर्य' शब्द से भी व्यवहार किया जाता है। तात्पर्यभेद से प्रयोग में भेद होना शब्दशास्त्र के आचार्यों ने मान्य किया है। घटादि वस्तु में एकत्व, द्वित्व, बहुत्व वास्तविक ही रहते हैं । तथापि विवक्षाभेद से एकवचन, द्विवचन और बहुवचन के प्रयोग भी शाब्दिकलोक म.न्य करते हैं क्योंकि वैसे प्रयोग लोक में प्रसिद्ध हैं। व्याकरणशास्त्र लोकानुसारी माना गया है । व्याकरण सूत्रकारों ने एकत्व विवक्षा रहने पर एकवचन हो और द्वित्व विवक्षा रहने पर द्विवचन का प्रयोग हो, तथा बहुत्व विवक्षा रहने पर बहुवचन का प्रयोग हो इस आशय के सूत्रों को बनाया है, यह व्याकरणशास्त्र की नीति है, इसी को शाब्दन्याय कहते हैं। इसी शाब्दन्याय के अनुसार एकत्व विवक्षा रहने पर एकवचन का प्रयोग होगा, परन्तु यह एकत्व विवक्षा तब ही होगी जब द्रव्य को उद्धृत और पर्याय को अनुदा माना जायगा । तथा बहत्व विवक्षा तब ही होगी जब द्रव्य को अलुदभूत और पर्याय को उभृत माना जायगा ऐसा मानना आवश्यक भी है, क्योंकि तात्पर्य - ज्ञान को शाब्दबोध के प्रति कारण सभी सिद्धान्त में माना गया है। अन्यथा दो अर्थवाले या अधिक अर्थवाले शब्दों का जहाँ प्रयोग होता है, वहाँ शाब्दबोध नहीं होता है जब तक तात्पर्यज्ञान नहीं होता है, वह हो जायगा । इसलिए तात्पर्यज्ञान को शाब्दबोध के प्रति कारण मानना आवश्यक है। प्रकरण आदि के पर्यालोचन से तात्पर्य का निश्चय होने पर दो अर्थवाले या अधिक अर्थवाले शब्दों का जहाँ प्रयोग होता है, वहाँ शाब्दबोध होता ही है। इसलिए विवक्षाभेद से "गुरुः" "गुरवः” इन दोनों प्रयोगों के होने में स्याद्वादियों को कोई प्रकार की अनपपत्ति नहीं है। [एक साथ एक वचन बहुवचन प्रयोग की उपपत्ति] "यदा भयो०'' इत्यादि- यहाँ यह शंका हो सकती है कि-"द्रव्य की उद्भूतत्व विवक्षा रहने पर एकवचन का प्रयोग होता है और पर्यायों की उदभूतत्व विवक्षा रहने
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy